- नेताओं पर भारी अफसरशाह…
‘दंतेवाड़ा का दंगल’ जीतने भाजपा-कांग्रेस के बीच खंदक की लड़ाई चल रही है। बीजेपी ने जहां अपने पिटे मोहरों को चुनाव की कमान सौंपी है तो वहीं संगठन की कमजोरी से जूझ रही कांग्रेस बाहरी नेताओं के दम पर चुनाव जीतने के ख्वाब देख रही है। मुद्दाविहीन चुनाव केवल सहानुभूति के आसरे लड़ा जा रहा है। ऐसे में नेताओं से ज्यादा सुर्खियां बटोर रहे हैं अफसरशाह। जी हां, इस चुनाव में एक आईएएस और पूर्व आईएएस की ही चारों ओर चर्चा है। विपक्षी दल तो मौजूदा अफसर के खिलाफ शिकायतों का पुलिंदा लेकर निर्वाचन आयोग के चौखट तक जा पहुंचा। इसका असर ये हुआ कि आयोग ने अफसर के खिलाफ रिपोर्ट तलब कर ली है। वहीं दूसरी ओर अफसरी छोड़कर खादी पहनने वाले पूर्व नौकरशाह ने सत्ताधारी पार्टी के प्रमुख से सवाल पूछकर नई बहस छेड़ दी है। दरअसल, उन पर भी कई आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में भला वे अपने दामन को पाक-साफ कैसे बता सकते हैं। बहरहाल, चुनावी माहौल में आरोप-प्रत्यारोप का यह सिलसिला अभी थमने वाला नहीं है।
- चौकीदार चोर है…
दक्षिण बस्तर की पुलिस ने साबित कर ही दिया कि ‘चौकीदार चोर है’। लौहनगरी में बीते सप्ताह एक ऐसा वाक्या सामने आया जिसमें चौकीदार ही चोर निकला। सरकारी शराब दुकान में हुई चोरी की गुत्थी पुलिस ने दो दिनों के भीतर ही सुलझा ली। मामले की पड़ताल में इस बात का खुलासा हुआ कि शराब दुकान की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिसे सौंपी गई थी, उसी चौकीदार यानी गार्ड ने ही इस वारदात को अपने साथियों के साथ अंजाम दिया। बहरहाल, घटनाक्रम का पटाक्षेप होने के बाद सभी ये कहने लगे कि चौकीदार चोर है। लेकिन मामले को सुलझाने वाली पुलिस खुद ये कहने से कतराती रही। पुलिस कहे भी तो भला कैसे! दरअसल, इसके राजनीतिक मायने तो कुछ और ही निकलते हैं।
- मुद्दों पर हावी शहादत की सियासत…
मांई दंतेश्वरी की धरा में उपचुनाव की खुमारी चढ़ने लगी है। नामांकन में जोर आजमाइश के बाद अब भाजपा और कांग्रेस के बीच चुनाव प्रचार में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ मची है। कार्यकर्ताओं की मान मनौव्वल, मंदिरों के फेरे, सोशल मीडिया के लिए फोटो सेशन से लेकर सड़कों की खाक छानी जा रही है। घर-घर जाकर मतदाताओं को रिझाने की कोशिशों तो खूब हो रही है पर चुनावी परिदृश्य से क्षेत्र के असल मुद्दे गायब हैं। सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी जैसे बुनियादी मुद्दों पर बात करने से इतर केवल शहादत की सहानुभूति के जरिए सियासी फसल काटने की तैयारी चल रही है। दोनों ही प्रमुख दलों में कमोबेश यही स्थिति है। इन सबके बीच नेताओं का भविष्य तय करने वाला मतदाता खामोश है। उसे भी पता है कि उसकी पूछपरख बस चुनाव भर के लिए है। उसके बाद तो उसे हाशिये पर भी जगह मिलनी मुश्किल है।
- मेरी कश्ती डूबी वहां, जहां पानी कम था…
जगदलपुर के एक पटाखा गोदाम में लगी भीषण आग ने ऐसी तबाही मचाई कि करोड़ों का सामान जलकर खाक हो गया। बस्तर के इतिहास में संभवत: इससे बड़ी आगजनी की घटना आज तक नहीं हुई होगी। शार्ट सर्किट से लगी आग ने तिमंजिला इमारत को अपने आगोश में ले लिया और देखते ही देखते बाजू के दुकान भी इसकी चपेट में आ गए। आग इतनी भयानक थी कि इस पर काबू पाने 15 घंटे से ज्यादा वक्त लग गया। इस हादसे से जुड़ा एक दुखद संयोग भी रहा। दरअसल, आगजनी से कुछ वक्त पहले तक शहर में झमाझम बारिश हो रही थी। लेकिन जब दुकान में आग लगी और इसने विकराल रूप धारण कर लिया तब बारिश का नामोंनिशान नहीं था। काफी जद्दोजहद के बाद जैसे ही देर रात आग की लपटें कुछ शांत हुई बारिश एक बार फिर शुरू हो गई। इसे देखते लोग कहने लगे…’मेरी कश्ती डूबी वहां, जहां पानी कम था!’
- नेताजी की बेबसी के मायने…
उपचुनाव के नामांकन के दौरान दंतेवाड़ा में भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा रहा। संयोग कुछ यूं बना कि प्रदेश के मुखिया और पूर्व मुखिया दोनों एक ही दिन अपने अपने उम्मीदवारों का समर्थन करने पहुंचे थे। ऐसे हालात में एक नेता बड़े असमंजस में थे। दरअसल, उनकी दुविधा इस बात की थी कि वे किसके साथ जाएं। यह जगजाहिर है कि पिछली सरकार में भी उनकी अच्छी खासी पैठ थी। ऐसे में कुछ कार्यकर्ता दबीं जुबां ये कहते दिखे कि देखते हैं आज नेताजी किसके साथ जाएंगे। खैर, नेताजी भी ठहरे राजनीति के माहिर खिलाड़ी। उन्होंने संयम से काम लिया और डटे रहे सत्ताधारी पार्टी के ही नेताओं के साथ। भई, आखिर चार साल और सत्ता का सुख जो भोगना है।
@ वेदप्रकाश संगम » महफूज़ अहमद
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