- क्या दंतेवाड़ा में नए चेहरे पर दांव लगाएगी कांग्रेस..!
दंतेवाड़ा उपचुनाव के लिए तारीखों के ऐलान के साथ ही सियासी गलियारे में एक ऐसी खबर तैर रही है, जिसे लेकर हर कोई हैरान है। खबर है कि कांग्रेस इस बार महेन्द्र कर्मा की कर्मभूमि रही दंतेवाड़ा सीट पर किसी नए चेहरे पर दांव लगा सकती है। पार्टी से जुड़े विश्वस्त सूत्र भी इस ओर इशारा कर रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व ने अभी इस बारे में पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन कहा जा रहा है कि पार्टी इस पर गंभीरता से विचार कर रही है। दरअसल, बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बस्तर की 12 में से 11 सीटें जीतने में कामयाब रही पर दंतेवाड़ा सीट गंवा बैठी। परिवार की अंतरकलह यहां पार्टी को भारी पड़ गई। लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा और 7500 वोटों के बड़े अंतर से कांग्रेस पिछड़ गई। ये कुछ ऐसे कारण है जिससे बहुत मुमकिन है कि पार्टी यहां इस बार नई रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरे। वैसे भी सत्तारूढ़ पार्टी की नजर बस्तर में ‘क्लीन स्वीप’ करने की है। ऐसे में प्रत्याशी चयन में पार्टी आलाकमान अगर कड़ा फैसला ले ले तो कोई अचरज की बात नहीं है। फिलहाल, अटकलों का बाजार गर्म है और सभी की निगाहें पार्टी के फैसले पर टिकी हुई है।
- बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना…
बस्तर के डिजिटल विलेज से आने वाले एक नेता की एक कार्यक्रम में ऐसी हालत हो गई कि मानो काटो तो खून नहीं। दरअसल, हुआ यूं कि ये नेताजी अपने गांव से निकले तो रास्ते में बच्चों की भीड़, सजा हुआ मंच, लाउडस्पीकर की आवाज, ये सब देख नेताजी भी पहुंच गए कार्यक्रम में। इन्हें यहां किसी ने बुलाया नहीं था। नेताजी को मंच की ओर बढता देख माईक संभाले व्यक्ति ने स्वागत के लिये नेताजी का नाम लिया, फूलमाला से स्वागत भी कराया। लेकिन जब नेताजी को माजरा समझ आया तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। दरअसल, ये कार्यक्रम विरोधी पार्टी का था, वहां उनके एक बड़े नेता की जयंती मनाई जा रही थी। मंच पर बैठे नेताजी सोचने लगे कि संबोधन की बारी आएगी तो विरोधी पार्टी की तारीफ कैसे करें। नेताजी को कोई माईक न पकड़ा दे, इस डर से वे कभी मोबाईल देखते तो कभी बगलें झांकने लगते। बारिश के इस मौसम में नेताजी को पसीना छूटने लगा। कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा से भी उन्हें राहत नहीं मिली। बेचारे इसके बाद फंस गए सामग्री वितरण में। यहां बनावटी मुस्कुराहट के साथ उन्हें तस्वीरें भी खिंचानी पड़ी। खैर, इस वाक्ये से नेताजी को इस बात की नसीहत तो मिल ही गई कि बिन बुलाए मेहमान की तरह किसी भी कार्यक्रम में नहीं कूदना चाहिए।
- कार्यकर्ताओं को नागवार गुजर रहे खरपतवार…
लहलहाते फसलों के बीच खरपतवार जैसे किसानों को पसंद नहीं आते। ठीक वैसे ही सत्ताधारी पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को इन दिनों अचानक उग आए खरपतवार भी नागवार गुजर रहे हैं। दरअसल, 15 साल का वनवास काटने के बाद सत्ता सुख भोगने की चाह रखने वालों की राह में ये अनचाहे खरपतवार रोड़ा बन रहे हैं। प्रदेश के बड़े लीडरों के प्रवास के दौरान ऐसे खरपतवार तो मंच में भी उग आते हैं जिससे पुराने कार्यकर्ताओं को स्वागत का मौका तक नहीं मिलता। बड़े लीडर का आगमन हो तो हेलीपेड में स्वागत से लेकर कार्यक्रम स्थल में मंचासीन होने तक ऐसे खरपतारों से जमीनी कार्यकताओं को दो-चार होना पडता है। बीते दिनों दक्षिण बस्तर में एक नेता ने सोशल मीडिया में एक की ओर इशारा करते ये तक लिख दिया कि ‘ये कहां से आ गया।’ खैर, ऐसे लोग सत्ता का सुख भोगें या न भोगें, इनके लिये तो माननीयों के साथ एक सेल्फी ही काफी है, जिसके दम पर वे अपनी रोटी तो सेंक ही लेते हैं।
- हाथ आया पर मुंह न लगा…
पिछले अंक में हमने आपको जिला हॉस्पिटल की एक कुर्सी के बारे में बताया था जिसमें विशेष चुंबकीय शक्ति है। इस कुर्सी पर नए साहब की पोस्टिंग की खबर ने सबको हैरान कर दिया। हैरानी इसलिए कि पुराने साहब कुर्सी छोड़ने को तैयार ही नहीं हैं। पहले भी दो दफे उनकी कुर्सी डगमगाई पर वे कोई न कोई तिकड़म लगाकर इससे चिपके रहे। हर बार कुर्सी का चुंबकीय बल उन्हें अपनी ओर खींच ही लेता रहा। ताजे वाक्ये में भी ऐसा ही हुआ। साहब को कुर्सी छोड़ने के लिए 15 दिन का वक्त दिया गया पर उन्होंने मियाद पूरी होने से पहले ही अपनी वापसी करा ली। इधर, नए साहब भी इस कुर्सी में बैठने को लेकर उतावले थे। उन्हें इस बात की उत्सुकता थी कि आखिर इस कुर्सी मे ऐसा क्या है जो साहब अलग होना ही नहीं चाहते। खैर, तकदीर का खेल देखिए! आर्डर होने के बावजूद नए साहब कुर्सी का सुख नहीं भोग सके। वे अब हाथ मलते शायद यही सोच रहे होंगे कि ‘हाथ तो आया पर मुंह न लगा।’
- विपक्ष के ठेकेदारों का हाल बुरा…
प्रदेश में इन दिनों विपक्ष के ठेकेदारों की दाल नहीं गल रही है। पिछली सरकार में ऐसे लोगों ने निर्माण कार्य और सप्लाई आदि में जमकर मलाई काटी। लेकिन अब सत्ता परिवर्तन के बाद इन सभी की दुकानदारी बंद है। हालांकि, निर्माण कार्यों के लिए बुलाई गई निविदा में इनका फार्म तो लिया जा रहा है लेकिन केवल सपोर्टिंग के लिए। बताना जरूरी होगा कि एक निविदा के लिए कम से कम तीन फार्म जरूरी होते हैं। एक फार्म तो सत्ताधारी कार्यकर्ता का होता है, जिसे कार्य पूर्व में ही आबंटित कर दिया जाता है। शेष दो फार्म विपक्ष के ठेकेदारों के होते हैं। ऐसे में बेचारे विपक्ष के ठेकेदार करें भी तो क्या। सत्ताधारी जो उनका फार्म सपोर्टिंग के लिए मांग रहे हैं। वैसे, कुछ कार्यालय ऐसे भी हैं, जहां इनका फार्म सपोर्टिंग के लिए भी स्वीकार नहीं किया जाता।
@ वेदप्रकाश संगम » महफूज़ अहमद
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