पामेड़ में जल ही ‘ज़हर’ है ! दो माह में किडनी की बीमारी से चार लोगों की उठीं अर्थियां
पंकज दाऊद @ बीजापुर। जल ही जीवन है। ये सच है लेकिन तेलंगाना से सटे उसूर ब्लाॅक के पामेड़ गांव के लिए ये वाक्य गलत है क्योंकि यहां जल ही ज़हर है। इस गांव में दूषित जल से इस साल दो माह में चार अर्थियां उठ गईं और वह भी किडनी की बीमारी से।
ऐसा इस साल ही नहीं हुआ है बल्कि हर साल तीन से चार मौतें जलजनित किडनी की बीमारी से होती हैं। पामेड़ के सरपंचपारा गांव के कड़पा कोतारामम (50), नर्रा रामुलू (50), टोटापल्ली किस्टैया (45), टोटापल्ली श्रीनिवास (35), अंबेडकरपारा के मच्चा वीरन्ना (55), सपना ओंकायल (40), पोपुल रावलम्मा (80), कनकू रामाराव (55), पटेलपारा के पट्टा पंकज (45), नुली प्रेमलता (56), राउतपारा के कंबल अवलैया (60), कड़पा बुचैया (45), नागेन्द्र बाबू (22), माड़वीपारा के वेलकम पोलैया (55), सपका चंद्रैया (45) एवं अन्य लोगों की मौत किडनी की बीमारी से हो गई। लौहयुक्त पानी से ये मौतें हो रही हैं।

अभी अंबेडकर पारा के सुमन कोरपुल (35), के मोहन (55), मुनगा चंद्रैया (40),ओपी उमाशंकर (40) ओपी रावनैया (40), कालराजू (38) , सरपंचपारा के नर्रा वेंकट नरसैया (50), गोदी नागेश्वर (50), प्रसाद मच्चा (30) आदि इस रोग से जूझ रहे हैं।
गांव के लोगों ने बताया कि पामेड़ में इलाज की सुविधा नहीं है और मरीज के लिए सबसे निकटतम स्वास्थ्य सुविधा 80 किमी दूर भद्राचलम में है। इसके अलावा वे हैदराबाद, हनमाकोण्डा, वारंगल एवं तेलंगाना के अन्य शहरों की ओर रूख करते हैं। इसमें काफी पैसा खर्च होता है।

गांव के लोगों में किडनी की इस बीमारी का भय इतना समा गया है कि वे इससे बचने 12 किमी दूर तेलंगाना से 40 रूपए में 15 लीटर पानी खरीदकर रोजाना लाते हैं। 1165 की आबादी वाले पामेड़ गांव की समस्या कब दूर होगी, ये भविष्य के गर्त में है।
मुसीबत वहीं खड़ी है और कलेक्टर बदल रहे हैं
गांव के सरपंच बीराबोइना गणपत एवं ग्रामीण भास्कर वंकायल का कहना है कि सालों से यहां ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की मांग की जा रही है। कई सालों से कलेक्टरों को इस समस्या से अवगत कराया गया। सभी ने इसे दूर करने का आश्वासन तो दिया लेकिन वे तबादले पर चले गए। कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सीएम भूपेश बघेल के पिछले प्रवास के दौरान भी उन्हें इस समस्या से अवगत कराया गया था। अभी बस्तर क्षेत्र विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष एवं मौजूदा विधायक विक्रम शाह मण्डावी को भी इस बारे में जानकारी दी गई है। उन्हें उम्मीद है कि कुछ हो जाएगा।
एक्सपर्ट व्यू इस बारे में पामेड़ के मेडिकल ऑफिसर डाॅ डी सुनील गौड़ कहते हैं कि इसका इलाज यहां नहीं होे सकता है। दरअसल, टोटल डिसाॅल्व्ड साॅलिड (टीडीएस) की मात्रा अधिक हो जाने पर किडनी की समस्या होती है। ये आयरन भी हो सकता या फिर दूसरी घातु भी।
पामेड़ सेक्टर के 33 गांवों में ये समस्या है। इसके लिए बड़ा फिल्टर जरूरी है। फिल्टर बेड से इसे साफ किया जा सकता है, ऐसा तेलंगाना में किया जा रहा है। किडनी की बीमारी टीडीएस की अधिकता से एक दिन या एक हफ्ते में पानी के उपभोग से नहीं होती है। लगातार इसके इस्तेमाल से ये रोग होता है।
हमारे इस वेबसाइट पर आपको ताजा News Update सबसे पहले मिलेगी। चाहे वो Latest News हो, Trending खबरें हो, या फिर Govt Jobs, रोजगार व सरकारी योजनाओं से जुड़ी जानकारी।
हमारी कोशिश है कि आपके काम की हर खबर आप तक सबसे पहले पहुंचे। अगर आप हमारी खबरों का नोटिफिकेशन तुरंत पाना चाहते हैं तो हमारे WhatsApp ग्रुप और टेलीग्राम चैनल से जुड़ सकते हैं।