सारकेगुड़ा में जुटे हजारों आदिवासी, कहा ‘रिपोर्ट सार्वजनिक हो’
पंकज दाउद @ बीजापुर। सुकमा जिले के सिलगेर में गोलीबारी की घटना की दण्डाधिकारी जांच को नाकाफी बताते आदिवासी नेताओं ने कहा है कि न्यायिक जांच के आदेश भले ही ना दिए गए हों, लेकिन दण्डाधिकारी जांच की एक तय समय सीमा होनी चाहिए और इसकी रपट भी सार्वजनिक होनी चाहिए।
सिलगेर से कैम्प हटाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे लोगों पर 17 मई को गोलीबारी में चार जानें चली गईं। इधर, 28 जून 2012 को सारकेगुड़ा में ऐसी ही गोलीबारी में 17 लोगों की जान चली गई थी। इसके 9 साल पूरे होने पर यहां आदिवासियों द्वारा श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया और इसमें ऐसे हादसों को रोकने पर वक्ताओं ने अपने राय रखे।
वक्ताओं ने कहा कि सिलगेर में चार आदिवासियों के मारे जाने के मामले की न्यायिक जांच की मांग की गई थी लेकिन इसकी दण्डाधिकारी जांच की जा रही है। वक्ताओं ने मांग की कि एक तय मियाद में इसकी जांच होनी चाहिए और इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए। मारे गए लोगों को न्याय चाहिए।
जहां तक सारकेगुड़ा की बात है, इसकी न्यायिक जांच हुई और इसमें फोर्स को दोषी पाया गया। खेद की बात है कि अब तक इस मसले में एक भी एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। आदिवासियों ने सिलगेर से कैम्प हटाने की मांग की और कहा कि कैम्प के रहने से ऐसी वारदातों के फिर से होने की आशंका है।
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— Khabar Bastar (@khabarbastar) June 26, 2021
इस मौके पर पूर्व केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री अरविंद नेताम, सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया, प्रियंका शुक्ला, वामपंथी नेता संजय पराते, किसान संघ राजनांदगांव के सुदेश टिकम, छग मुक्ति मोर्चा के रमाकांत बंजारे एवं अन्य नेता मौजूद थे।
स्मारक बनाया
सारकेगुड़ा में फोर्स की गोलीबारी में मारे गए 17 लोगों के स्मारक गांव में ही बनाए गए और उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। आदिवासियों ने कहा कि बेकसूर लोगों को मारा गया लेकिन अब तक उन्हें न्याय नहीं मिल सका है और ना ही दोषियों पर कार्रवाई हुई है। लोगों ने दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग की। इस अवसर पर युवाओं ने सरकार पर कई आरोप लगाते नृत्य पेश किया।
मीलों दूर से पैदल आए
सारकेगुड़ा की सभा में शामिल होने सुकमा, दंतेवाड़ा एवं बीजापुर जिले के अंदरूनी गांवों से करीब 5 हजार लोग आए। सोमवार को इस सभा में ये लोग अपने खाने का सामान लेकर आए थे। सभा स्थल में ही उन्होंने भोजन पकाया। बताया गया है कि कोण्टा इलाके से चार दिनों तक चलकर वे यहां पहुंचे। वहीं गंगालूर इलाके से दो दिन पहले लोग यहां आने के लिए निकले थे।
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