सिलगेर: फोर्स ने आपा खोया, हादसा टल सकता था- मनीष कुुुंजाम… सीपीआई नेता ने न्यायिक जांच की मांग की
पंकज दाउद @ बीजापुर। आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कोण्टा के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने कहा कि सिलगेर में फोर्स ने धैर्य से काम नहीं लिया। यदि धैर्य होता ये हादसा टाला जा सकता था। सीपीआई नेता ने सुप्रीम या हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से इस मामले की जांच की मांग की है।

आदिवासी नेता व कोण्टा के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम वरिष्ठ सीपीआई नेता रामा सोड़ी के साथ शनिवार को सिलगेर पहुंचे। उन्होंने पीड़ित परिवारों से चर्चा की और गांव के लोगों का संबोधित किया।
मनीष कुंजाम ने कहा कि हादसा तो हो गया है और तीन ग्रामीणों की जान चली गई है। अठारह लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं। इस मामले में जो बात सामने उभरकर आई है, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कैम्प के जवानों ने अपना आपा खो दिया था और गोली चला दी।
ये हादसा शांतिपूर्ण ढंग से हल हो सकता था और वह भी फकत बातचीत के जरिए। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन ने ये धारणा बना ली है कि इस इलाके में रहने वाले सभी लोग नक्सली हैं। ये धारणा गलत है। मारे जाने के बाद किसी भी व्यक्ति को नक्सली घोषित कर दिया जाता है।
सीपीआई नेता ने दोषी जवानों पर कार्रवाई की मांग करते कहा कि पेसा कानून का पालन बस्तर में नहीं हो पा रहा है। कायदे से इस कानून के तहत गांव में कोई भी काम होने से पहले ग्राम सभा होती है और इसमें अनुमति मिलने पर काम शुरू होता है।
गांव के लोगों का दावा है कि जिस जमीन पर फोर्स का कैम्प बना है, वह जमीन कोरसा सोमा की है। यहां उसकी 25 एकड़ की जमीन पर कैम्प बनाने से पहले उनसे संपर्क तक नहीं किया गया।
‘नक्सलियों’ को प्रशासनिक मदद कैसे !
सीपीआई नेता मनीष कुंजाम ने सवाल किया कि पहले मारे गए तीन लोगों को एक सिरे से आईजी पी सुंदरराज ने नक्सली करार दिया। अब जिला प्रशासन इन्हीं मारे गए लोगों के परिजनों को अंतिम संस्कार के लिए दस-दस हजार रूपए की राशि दे रही है। क्या नक्सलियों को अंतिम संस्कार के लिए राषि दी जाती है ? ये एक बड़ा विरोधाभास है।
कुंजाम ने कहा कि जिला प्रशासन ने मारे गए तीन लोगों के परिवारों को दस-दस हजार रूपए की सहायता राशि दी है। ये उन परिवारोें की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। प्रशासन ने इसे मजाक बना लिया है। समूची घटना निंदनीय एवं दुःखद है।
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