Maa Danteshwari Temple: यहां गिरे थे माता सती के दांत, आज भी होते हैं चमत्कार… जानिए दिलचस्प कहानी

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By Khabar Bastar

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Maa Danteshwari Temple: छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र, प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन इसकी विशेष पहचान मां दंतेश्वरी मंदिर से है, जो शक्तिपीठों में से एक है। 

यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है और यहां माता सती के दांत गिरने की मान्यता है। यही वजह है कि इसे एक अत्यंत पवित्र स्थान माना जाता है।

नवरात्रि के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, जो मां दंतेश्वरी के दर्शन करने के लिए विभिन्न राज्यों से आते हैं।

मंदिर का इतिहास और चमत्कार

मां दंतेश्वरी का यह मंदिर सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। लगभग 705 साल पहले, चालुक्य नरेश अन्नमदेव ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। 

यह शक्तिपीठ अब केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की देखरेख में है। मंदिर की विशेषता यह है कि यहां मां दंतेश्वरी की मूर्ति  शिला पर उकेरी गई है। मंदिर के सामने गरुड़ स्तंभ भी स्थापित है।

यहां के लोग मानते हैं कि यह स्थान चमत्कारिक है। श्रद्धालुओं की आस्था है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना का उत्तर माता जरूर देती हैं। इस मंदिर के चमत्कारों के किस्से दूर-दूर तक मशहूर हैं, जो इसे और भी विशेष बनाते हैं।

माता सती के दांत यहां गिरे थे

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता सती ने योगाग्नि द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शिव उनके शरीर को लेकर तांडव नृत्य करने लगे। 

तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां माता के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ।

बस्तर स्थित दंतेश्वरी मंदिर में माता सती का निचला दांत गिरा था, इसलिए इसे भी 51 शक्तिपीठों में गिना जाता है।

दंतेश्वरी मंदिर की विशेष पूजा विधियां

मां दंतेश्वरी मंदिर की पूजा विधि भी बेहद अनोखी और रहस्यमयी मानी जाती है। यहां हर वर्ष दीपावली के मौके पर मां की लक्ष्मी रूप में विशेष पूजा होती है। 

मंदिर के परिसर को आठ भैरव भाइयों का निवास स्थल भी माना जाता है, जो इसे और अधिक धार्मिक महत्त्व देता है। इसके अलावा, यहां तीन शिलालेख और 56 प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो मंदिर के अद्वितीय ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को दर्शाती हैं।

फागुन मड़ई: अनोखी नवरात्रि

दंतेश्वरी मंदिर में साल में तीन नवरात्र मनाई जाती हैं। चैत्र और क्वांर के अलावा, यहां फागुन मड़ई के नाम से तीसरी नवरात्रि भी मनाई जाती है, जिसे आखेट नवरात्र कहा जाता है। 

इस अवसर पर देवी के नौ रूपों का सम्मान करते हुए नौ दिनों तक विशेष पूजा और आयोजन होते हैं। माईजी की डोली निकाली जाती है और 600 से ज्यादा गांवों के देवी-देवता इस शक्तिपीठ में आमंत्रित होते हैं।

बस्तर दशहरा: मां दंतेश्वरी की विशेष भूमिका

बस्तर दशहरा यहां का प्रमुख पर्व है, जो मां दंतेश्वरी को समर्पित है। इस त्योहार में मां की डोली जगदलपुर लाई जाती है। यह पर्व इसलिए भी खास है क्योंकि बस्तर दशहरे में रावण वध की परंपरा नहीं होती। यह पर्व पूरी तरह से मां दंतेश्वरी की महिमा को समर्पित होता है।

मां दंतेश्वरी न केवल बस्तर के राजपरिवार की आराध्य देवी हैं, बल्कि संपूर्ण बस्तर के लोग उन्हें अपनी इष्ट देवी मानते हैं। माता के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास ही इस मंदिर को विश्वभर में विशेष पहचान दिलाता है। 

श्रद्धालु मानते हैं कि यहां की गई सच्चे दिल की प्रार्थना अवश्य पूरी होती है और माता हर भक्त की मनोकामना को पूरा करती हैं।

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