जानिए… गंगालूर में किसकी लगेगी आदमकद प्रतिमा ? एक पखवाड़े से आदिवासी जुटे हैं मंच की तैयारी में, सरकार की इसमें भूमिका नहीं
पंकज दाऊद @ बीजापुर। यहां से कोई 22 किमी दूर गंगालूर के टोण्डापारा में आदिवासी सड़क किनारे एक मंच की तैयारी करीब एक पखवाड़े से भी अधिक वक्त से कर रहे हैं और यहां एक आदमकद प्रतिमा की स्थापना की जाएगी।
यहां से 35 किमी दूर बसे गांव पुसनार के डोण्डा पेद्दा नाम के शख्स भले ही इस दुनिया में नहीं है लेकिन 110 साल बाद सरकार को इनकी याद आई है और अफसर अब इनके वंशजों के बारे में पता लगा रहे हैं। इस सिलसिले में रायपुर और जगदलपुर से आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के अफसर सितंबर में आए हुए थे।
संस्थान की डायरेक्टर शम्मी आबिदी के मार्गदर्शन में ये अफसर काम कर रहे थे। जगदलपुर के संस्थान के उप संचालक डाॅ रूपेन्द्र कवि एवं सहायक संचालक डाॅ राजेन्द्र सिंह ने बताया कि डोण्डा पेद्दा के बारे में सारे मालूमात के लिए वे गंगालूर तक गए थे लेकिन फिर वे उसके आगे नहीं जा सके। कुछ अड़चन के कारण वहां तक पहुंचना मुश्किल था।
गंगालूर में इस बारे में उन्होंने रिटायर्ड शिक्षक यामा कावरे से चर्चा की। उनसे काफी कुछ बातें पता चलीं। डाॅ कवि एवं डाॅ सिंह के मुताबिक दरअसल, ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ उठ खड़े हुए आदिवासी नेताओं के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है और ऐसे वीरों के बारे में एक पुस्तक का प्रकाशन किया जाना है।
अनसंग हीरोेज की जानकारियां इसी वजह से जुटाई जा रही है। उन्होंने कहा कि 1910 में ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ बस्तर में एक विद्रोह शुरू हुआ और ये विद्रोह आदिवासियों ने किया था। ये भूमकाल विद्रोह के नाम से जाना जाता है।
बस्तर के कई हिस्सों में ये विद्रोह हुआ और अलग-अलग इलाकों में इसके लीडर भी अलग-अलग थे। बीजापुर इलाके में तब पुसनार के मुरिया जनजाति के डोण्डा पेद्दा भूमकाल विद्रोेह की अगुवाई कर रहे थे।
अंग्रेेज शासन ने डोण्डा समेत पांच लोगों को विद्राही मानते उम्र कैद की सजा दी। इस इलाके के अन्य चार लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। डोण्डा लंबी-चौड़ी कद काठी के थे और इलाके में उनका खासा प्रभाव था।
गुण्डाधूर का नाम नंबर 1 पर
जगदलपुर ब्लाॅक के नेतानार गांव के गुण्डाधूर का नाम भूमकाल में सबसे उपर था। कांकेर जिले के अंतागढ़, दंतेवाड़ा जिले के कुआकोण्डा और सुकमा जिले के कोण्टा इलाके तक विद्रोह की आग भड़क चुकी थी। इस दौरान आजादी की लड़ाई के इन सेनानियों को उम्र कैद और फांसी तक दी गई।
ऐसे जनजातीय नायकों के बारे में पहली बार आदिम जाति विभाग जानकारियां जुटा रहा है। पुस्तक के प्रकाशन से कई गुमनाम नायकों के बारे में नई पीढ़ी को पता चलेगा।
रोड्डा के नाम पर चौक
भूमकाल विद्रोह के एक लीडर दंतेवाड़ा जिले के कुआकोण्डा ब्लाॅक के गढ़मेली गांव के रोड्डा पेदा भी थे। इनके वंशजों से अनुसंधान टीम की मुलाकात हुई। काफी कुछ रोड्डा के बारे में पता चला। गांव में इनके नाम पर चार साल पहले एक चौक भी बना दिया गया है।
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