Inside Story: भलेमानुस हैं इसलिए छोड़ दिया, किसी की अपील पर नहीं… घर जाने किराए के लिए नक्सलियों ने दिए 4 हजार
पंकज दाऊद @ बीजापुर। कुटरू पुलिस अनुभाग में बेदरे में बन रहे छग सेतु निगम के पुल पर काम करने का विरोध करते 5 दिनों तक अगवा रहे इंजीनियर अशोक पवार (40) एवं राजमिस्त्री आनंद यादव (28) को आखिरकार मंगलवार को इसलिए नक्सलियों ने छोड़ दिया क्योंकि उन्हें लगा कि दोनों अपहृत अच्छे व्यक्ति हैं।
नक्सलियों ने साफ किया कि उन्हें इसके लिए किसी को पैसे नहीं देने हैं और वे किसी की अपील पर भी दोनों को नहीं छोड़ रहे हैं।
छह दिन पहले यानि शुक्रवार की दोपहर करीब 12 बजे जब अशोक पवार (40) कर्मचारियों को जरूरी हिदायत देने कैम्प से कुछ दूर निकल गए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि वे भूल गए थे कि वहां फोर्स नहीं है और उन्हें पुलिस कैम्प से इतनी दूर नहीं आना चाहिए था।
वहां सादे कपड़े में दो लोग आए। इनमें से एक ग्रामीण ने उनसे कहा कि मुझे कमरा बनवाना है और मेरे साथ चलो। तब इंजीनियर ने कहा कि उनके भोजन का वक्त हो गया है, वे नहीं जाएंगे। तब एक व्यक्ति ने उनका हाथ पकड़ लिया। तब उन्होंने राजमिस्त्री को पुकारा तब एक और ग्रामीण ने उसे भी पकड़ लिया।
इस बीच एक बंदूकधारी प्रकट हुआ। वे उन्हें नदी पार कुछ दूर ले गए और फिर दोनों की आंखों में पट्टी बांध दी गई। उन्हें पता नहीं वे दोनों को कहां ले गए।
एक अनुमान के मुताबिक नक्सली उन्हें नदी पार कोई 8-10 किमी दूर ले गए थे। आंखों पर पट्टी हमेशा बंधी रहती थी और इस वजह से उन्हें दिशा का भी ज्ञान नहीं हो सका। सुबह मुंह धोने के वक्त ही आंखों की पट्टी खोली जाती थी। वक्त पर भोजन दिया जाता था।
इंजीनियर व राजमिस्त्री से ये भी पूछा गया कि तंबाकू का शौक पालते हो तो वह भी मंगा दिया जाएगा। इन पांच दिनों में नक्सलियों ने उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। उन्हें बस इतना बताया गया कि संगठन पुल का विरोध करता है और इसलिए उनका अपहरण किया गया है।
नक्सलियों ने कहा कि दोनों ही अच्छे व्यक्ति हैं, इसलिए उन्हें छोड़ दिया जाएगा। मंगलवार की दोपहर करीब 12 बजे दोनों को छोड़ दिया गया लेकिन इसके पहले दोनों को चेतावनी दी गई कि यहां काम ना करना और सीधे अपने गांव चले जाना।
किराए के लिए दिए पैसे
नक्सलियों ने अशोक पवार से ये भी कहा कि उनकी पत्नी और बच्चियां परेशान हैं। इस वजह से भी वे कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं। नक्सलियों ने ये भी पूछा कि बेदरे के बाद कैसे गांव जाओगे, तो दोनों अपहृतों ने कहा कि वे कहीं से अपने लिए इंतजाम कर लेंगे। इस पर नक्सलियों ने दोनों को दो-दो हजार रूपए किराए के लिए दिए।
दोनों की आंखों में पट्टी बंधी थी। अपहर्ता नक्सली कुछ दूर आते थे और फिर दोनों को दूसरे नक्सलियों को सौंप देते थे। मंगलवार को करीब रात 8 बजे नाव से दोनों को साइट तक पहुंचाया गया। फिर वे बेदरे थाने आए। यहां से वे कुटरू आए और पत्रकारों से रूबरू हुए।
अशोक पवार की पत्नी सोनाली पवार अपनी तीन साल की बेटी पिहू के साथ नारायणपुर गई थी। बड़ी बेटी निकिता बेदरे में ही थी और बुधवार की सुबह वह अपने पिता से कुटरू में मिली। पत्नी सोनाली दोपहर तक कुटरू नहीं पहुंच पाई थी।
जब उनका अपहरण हुआ तो नक्सलियों ने पहले ही साफ कर दिया कि वे किसी को भी उन्हें छुड़वाने पैसे ना दें। वे किसी के दबाव में उन्हें नहीं छोड़ रहे हैं।
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