मछलियों को अब ‘भगवानों’ से खतरा नहीं ! POP पर पाबंदी, मूर्तिकारों पर पालिका की नजर
पंकज दाउद @ बीजापुर। अब यहां महादेव तालाब की मछलियों समेत दीगर जलीय जीवों को भगवानों की प्रतिमाओं से कोई खतरा नहीं है क्योंकि इन मूर्तियों में अब प्लास्टर आफ पेरिस का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। इस बात की पुष्टि करने खुद पालिका के कर्मचारियों ने निर्माणाधीन मूर्तियों को कई बार चेक किया था।
यहां कांकेर जिले के पखांजूर के अलावा ओडिशा से मूर्तिकार आए हुए हैं। वे एक माह से भगवान गणेश की प्रतिमाएं बना रहे थे। अब वे देवी दुर्गा की प्रतिमाएं बनाएंगे। इन मूर्तियों में प्लास्टर आफ पेरिस के इस्तेमाल की वर्जना है। ये सरकारी पाबंदी है और इसे लेकर पालिका ने भी नजर रखी है।
पखांजूर से आए मूर्तिकार मिथुन मण्डल ने बताया कि इस साल उन्होंने भगवान गणेश की करीब 30 मूर्तियां बेचीं। इनकी कीमत डेढ़ से 7 हजार रूपए तक थी। वे 20 साल से मूर्तिकार हैं और यहां 6 साल से आ रहे हैं। पखांजूर में प्रतिमाएं मिट्टी से ही बनाई जाती हैं। वहां प्लास्टर आफ पेरिस का इस्तेमाल नहीं होता है और मिट्टी से ही प्रतिमाएं बनाने में वे माहिर हैं।
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— Khabar Bastar (@khabarbastar) September 4, 2021
वे मिट्टी, पैरा, लकड़ी एवं वाॅटर कलर का इस्तेमाल करते हैं। उन्हें यहां आकर ही पता चला कि पीओपी बैन है। वैसे वे बताते हैं कि पीओपी से मूर्ति जल्दी बनती है और इसमें चमक भी ज्यादा होती है। वे बताते हैं कि पिछले साल उनकी कार्यशला में प्रशासन के लोग आए थे और मूर्तियों को खुरचकर देख गए। इसमें प्लास्टर आफ पेरिस यानि पीओपी नहीं पाया गया।
उल्लेखनीय है कि पीओपी से मछलियों के गिल और त्वचा को नुकसान होता है। इसके अलावा जहरीले रंगों का इस्तेमाल होने से जलीय जीव मर जाते हैं। पर्यावरण को बचाने इस पर पाबंदी लगाई गई है।
निरीक्षण किया गया
नगरपालिका के सीएमओ पवन कुमार मेरिया ने बताया कि कर्मचारी हर जगह जाकर जांच कर रहे हैं और ये पुष्ट कर रहे हैं कि कहीं पीओपी का इस्तेमाल प्रतिमा बनाने में तो नहीं किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि प्रतिमा बनाने में पीओपी को बैन किया गया है। इस वजह से लगातार जांच की जाती है।
सालाना 4 लाख की कमाई
महादेव तालाब में ही शहरी प्रतिमाओं का विसर्जन करते हैं। ये तालाब जनपद और जल संसाधन विभाग दोनों के अधीन है जबकि बैदरगुड़ा, बांडागुड़ा और पनारापारा का तालाब पालिका के पास है। महादेव तालाब के मछली का ठेका जनपद देती है जबकि सिंचाई का टैक्स जल संसाधन विभाग लेता है।
इस तालाब को 10 साल के लिए ठेके पर दिया जाता है। तीन साल पहले मत्स्य स्व सहायता समिति ने इसका ठेका लिया था। समिति के सदस्य एवं पूर्व पालिका उपाध्यक्ष घासीराम नाग बताते हैं कि अभी तालाब में रोहू, कतला, काॅमन कार्प आदि मछलियां हैं और साल में करीब 4 लाख रूपए की मछली यहां से मिल जाती है।
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