Employees Rule, Employees Retirement, CRPF Retirement, Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट द्वारा कर्मचारियों को बड़ा झटका दिया गया है। दरअसल सीआरपीएफ के नियम के तहत अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।
इसके साथ ही सीआरपीएफ के नियम के तहत अनिवार्य सेवानिवृत्ति सीआरपीएफ अधिनियम 1949 के तहत अनुशासनत्मक नियंत्रण बनाए रखने के उद्देश्य से वैध कर दिया गया है।
चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया डी चंद्रचूड़ और जीवी पादरीवाला की पीठ ने कहा किसी आफ अधिनियम की धारा 11 के तहत मामूली सजा का प्रावधान प्रकृति में गैर विस्तृत है और केंद्र सरकार को दंडनीय के माध्यम में अनिवार्य सेवा निवृत्ति निर्धारित करने की स्वतंत्रता दी गई है।
यह हुआ फैसला
अदालत में सीआरपीएफ अधिनियम की धारा 8 के तहत इस्तेमाल किए जाने वाले नियंत्रण शब्द का विश्लेषण किया है और इसे अनुशासरात्मक नियंत्रण के रूप में शामिल किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि यह स्पष्ट है कि नियंत्रण व्यापक आयाम का शब्द और इसे अनुशासनआत्मक नियंत्रण भी शामिल है।
अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा भी शामिल
इसलिए हमारे विचार में सीआरपीएफ अधिनियम केंद्र सरकार के बल पर नियंत्रण निहित करने की परिकल्पना करता है।
ऐसे में धारा 11 के तहत लगाए जाने वाले विभिन्न अधिनियम के बनाए गए नियम के अधीन है तो केंद्र सरकार अपने सामान्य नियम बनाने की शक्ति के अभ्यास कर सकती है।
और बल पर पूर्ण और प्रभावी नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए धारा में दंड के अलावा अन्य दंड भी निर्धारित कर सकती है। जिसमें अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा भी शामिल है।
यह है मामला
ऐसे में अब सीआरपीएफ अधिकारियों को दंडात्मक कार्रवाई करते हुए अनिवार्य सेवानिवृति भी दी जाएगी। इसके लिए अपील दायर की गई थी।
मामले में तथ्य प्रतिवादी सीआरपीएफमें हेड कांस्टेबल को दी गई अनिवार्य सेवानिवृति की सजा से संबंधित है, जो अपनी सहकर्मी पर हमला करने के आरोपी थे।
जांच के बाद अधिकारियों ने 16 फरवरी 2006 को उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी थी।
प्रतिवादी ने विभाग में अपील दायर की। जिसे खारिज कर दिया गया था। सजा और अपील को खारिज करने के आदेश को उड़ीसा हाईकोर्ट के समकक्ष याचिका भी चुनौती दी गई थी।
एकल न्यायाधीश से पीठ नेअनुमति दी कि सीआरपीएफ अधिनियम की धारा 11(1) सजा के रूप में अनिवार्य सेवा निवृत्ति का प्रावधान नहीं करती। वही डिवीजन ब्रांच के समक्ष आदेश को संघ की चुनौती दी गई थी।
जिसके बाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए एक सिविल अपील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिस पर फैसला सुनाया गया है।
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