Election Result Explainer, Haryana Election Explainer, Chhattisgarh-Haryana Election Points : एग्जिट पोल से विपरीत भाजपा ने हरियाणा फतेह कर लिया है। हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनी है।
लगातार तीसरी बार हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनने के बाद सारे एग्जिट पोल ध्वस्त हो गए हैं। वहीं विधानसभा चुनाव में भाजपा की हैट्रिक के बाद नतीजे साफ हो गए।
ऐसे में चौंकाने वाले प्रदर्शन के साथ ही जीत हासिल करने पर भाजपा के कई फैक्टर की चर्चा हो रही है। हालांकि इस चुनाव में छत्तीसगढ़ जैसे परिणाम देखने को मिले हैं।
छत्तीसगढ़ में भी एग्जिट पोल कांग्रेस के पक्ष में रहने के बावजूद नतीजे भाजपा के पक्ष में आए थे और कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। ऐसे में हरियाणा चुनाव को छत्तीसगढ़ चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।
मतभेद संघर्ष और मजबूत सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस के नतीजे ध्वस्त हुए हैं। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे ही प्रक्रिया देखने को मिली थी। अंदरूनी मतभेद और संघर्ष का सीधा-सीधा असर छत्तीसगढ़ चुनाव में देखा जा चुका था।
कांग्रेस की सबसे बड़ी खामी
बावजूद कांग्रेस की कोर कमेटी द्वारा हरियाणा में इस पर फोकस ना करना, उनकी सबसे बड़ी खामी मानी जा रही है।
हरियाणा में भाजपा का प्रदर्शन निश्चित ही 3 दिसंबर 2023 की याद दिला देगा, जब छत्तीसगढ़ के नतीजे में इस तरह से कांग्रेस को बड़ा नुकसान लगा था।
सर्वे एजेंसी और राजनीतिक पंडितों ने हरियाणा के राजनीतिक अखाड़े में कांग्रेस की जीत पर अपना विश्वास जताया था लेकिन छत्तीसगढ़ चुनाव के जैसे परिणाम हरियाणा में भी देखे गए हैं।
तब भी छत्तीसगढ़ में एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनती दिखाई दे रही थी लेकिन जनता नहीं बीजेपी पर अपना भरोसा दिखाया था।
हरियाणा में भी स्थिति ऐसे ही देखी गई है। ऐसे में जानते हैं कि हरियाणा और छत्तीसगढ़ के चुनाव और इसके नतीजे में क्या समानता है। ऐसी कौन से कारण है जिसके कारण कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है।
आंतरिक तोड़फोड़
कांग्रेस में आंतरिक तोड़फोड़ छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की आधी जीती हुई लड़ाई हारने का सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम के बीच सार्वजनिक मंच पर लड़ाई थी।
छत्तीसगढ़ में मत के विभाजन का असर भाजपा के पक्ष में आया था। वहीं हरियाणा में भी ऐसे ही स्थिति थी। कुमारी शैलजा सहित भूपेंद्र हुड्डा के बीच दरार साफ देखी जा रही थी।
राहुल गांधी द्वारा मध्यस्थता के लाखों प्रयास के बावजूद इन दोनों की लड़ाई का सीधा-सीधा असर नतीजे पर देखने को मिला है। मुख्य आंतरिक पार्टियों को मजबूत करने की जगह उन्हें कमजोर करने का काम करती है।
ऐसे में कांग्रेस का आंतरिक कलह पर कोई नियंत्रण नहीं था और छत्तीसगढ़ हरियाणा दोनों में ही प्रमुख खिलाड़ियों के बीच युद्ध विराम लगाने में विफल रहने के कारण दोनों राज्यों में कांग्रेस की हार हुई है।
भाजपा और कांग्रेस की सीधी लड़ाई, क्षेत्रीय पार्टियों का प्रभाव नहीं
इसके अलावा द्विपक्षीय लड़ाई में छत्तीसगढ़ की तरह हरियाणा में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला देखा गया। प्रमुख क्षेत्र के खिलाड़ी जैसे दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला भी कोई खास नतीजा नहीं दिखा पाए जबकि छत्तीसगढ़ में भी अजीत जोगी और अन्य आदिवासी पार्टी अपना छाप दिखने में असफल रही थी। जिसके कारण भाजपा और कांग्रेस की सीधी लड़ाई में जातीय समीकरण देखने को मिला। इसके अलावा क्षेत्रीय पार्टियों का प्रभाव नहीं होने की वजह से कांग्रेस को बड़ा नुकसान लगा है।
वोट शेयर अधिक, सीट शेयर कम
हरियाणा और छत्तीसगढ़ दोनों में ही कांग्रेस के वोट शेयर अधिक देखे गए थे लेकिन उनकी सीट शेयरिंग में लगातार गिरावट आने की वजह से इन दोनों राज्यों में कांग्रेस सरकार बना पाने में असफल रही।
जबकि भाजपा के संगठन के फैसले के सफल कार्य, अनबन के साथ ही मुख्यमंत्री का बदलाव ने उनके हित में बड़ी भूमिका निभा गया।
मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनने से राज्य में भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर पर भाजपा ने काबू पाया। कई राजनीतिज्ञ का मत है कि कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन का विकल्प चुना होता है तो इसके नतीजे अलग हो सकते थे।
वही घोषणा पत्र की लड़ाई छत्तीसगढ़ की गेम चेंजर महतारी वंदन योजना के सीख लेते हुए भाजपा ने “लाडो लक्ष्मी योजना” की घोषणा की। जिसमें हर महिलाओं को हर महीने ₹2100 देने का वादा किया गया। यह फैसला बीजेपी के हक में माना जा रहा है।
किसान जवान और पहलवान के मुद्दे
इसके अलावा कांग्रेस किसान जवान और पहलवान के मुद्दे के सहारे बीजेपी को परास्त करने की राजनीति बना रही थी। हालांकि उन्होंने इसे मंच तक ही सीमित रखा। जन जन तक वह अपनी बात पहुंचाने में असफल रही।
जवान के मामले में कांग्रेस ने अग्नि वीर का मुद्दा उठाया था लेकिन नायब सिंह सैनी ने अग्नि वीरों को राज्य सरकार के द्वारा नौकरी देने की घोषणा पर डैमेज कंट्रोल करना शुरू किया था।
इसके अलावा पेंशन योजना, अनाज की MSP सहित अन्य लाभकारी योजनाओं के जरिए भी कांग्रेस ने राज्य की जनता को साधने की कोशिश की थी। हालांकि राज्य की जनता ने इन सभी से ऊपर बीजेपी की सरकार को रखा।
एंटी इनकंबेंसी का मुद्दा
इसके अलावा हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ जब एंटी इनकंबेंसी का मुद्दा उठाया गया था। तब तत्काल मुख्यमंत्री का चेहरा बदल दिया गया।
इसके साथ नायब सिंह सैनी को सीएम बना कर डैमेज कंट्रोल करने की तैयारी शुरू कर दी गई थी। खट्टर को ना सिर्फ मंच पर बुलाना बंद किया गया बल्कि चुनावी पोस्टर का चेहरा गायब कर दिया गया। ऐसे में भाजपा स्थिति को संभालने में सफल रही थी।
जाट बनाम गैर जाट का समीकरण
हरियाणा का चुनाव जाट बनाम गैर जाट का समीकरण था। चुनावी रणनीति के सहारे हरियाणा में जाट बनाम गैर जाट करना भी काम आ गया।
एक राजनीति के तहत गैर जाट को ज्यादा टिकट दिया गया।ब्राह्मण पंजाबी और अन्य जाति के उम्मीदवारों को प्राथमिकता देने के साथ यह फैसला बीजेपी के हित में देखने को मिला है।
कई मायनों में हरियाणा के चुनाव और इसके परिणाम छत्तीसगढ़ के चुनाव समीकरण और उनके परिमाण से मेल खाते हैं।
दोनों ही राज्यों के एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनने के ऐलान को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया और जनता ने इन दोनों राज्यों में बीजेपी का चयन किया है।
ऐसे में आगे होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की राह आसान नहीं है।
उत्तर प्रदेश के उपचुनाव के साथ ही महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव झारखंड के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कितनी सफल हो पाती है, यह तो समय ही बताएगा।
फिलहाल कांग्रेस को अपने आंतरिक कलह पर मजबूती से काम करने की जरूरत है।
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