बीजापुर @ खबर बस्तर। सखी सेंटर की महिला कर्मचारियों से हाजिरी की पुष्टि करने रोज फोटो व्हाट्सएप ग्रुप में भेजने की जांच के मसले ने तूल पकड़ना शुरू कर दिया है। महिला शिकायत एवं जांच समिति की एक सदस्या ने एकतरफा इंक्वायरी का आरोप लगाते कमेटी से उन्हें हटा देने कलेक्टर से आग्रह किया है।
आपको बता दें कि बिलासपुर की एक महिला सुश्री प्रियंका शुक्ला ने जुलाई में इस मामले को लेकर संचालनालय से शिकायत की थी। इसके बाद सेल्फी से अटेंडेंस के मसले की जांच का आदेश जारी हुआ। कलेक्टोरेट में पहले ही एक समिति बनी है जो ऐसे मामलों को देखती है। इसकी पीठासीन अधिकारी राजस्व विभाग की एक महिला कर्मचारी को बनाया गया।
अब सेल्फी वाले मामले की जांच की बात आई तो एक नई कमेटी जिला कार्यक्रम अधिकारी ने बना दी। इसमें पीठासीन अधिकारी को अब सदस्य बना दिया गया और महिला बाल विकास विभाग की ही एक अधिकारी को अध्यक्ष बना दिया गया।
बात साफ है कि विभाग के अफसर ने ऐसा इसलिए किया है कि जांच रपट उनके अनुकूल बन जाए। दीगर विभाग की अध्यक्ष या पीठासीन अधिकारी होंगी तो वे तथ्य के आधार पर रपट देंगी।
ऐसे में जांच सिर्फ इस बात की होनी चाहिए कि बायोमेट्रिक की सुविधा होने के बावजूद हाजिरी के लिए रोज फोटो क्यों मंगाए जाने का आदेश सखी सेंटर के अधिकारी-कर्मचारी को दिया गया। क्या इससे महिला कर्मचारियों की निजता का हनन हुआ ? इस बात की भी जांच होनी चाहिए। जांच के बिंदू तय कर जांच होनी चाहिए।
अब ये बात सामने आ रही है कि जांच के मूल बिंदू से बात हट गई है और पीड़ितों पर ही आरोप तय किए जाने की कवायद चल रही है, जबकि जांच तो सेल्फी मंगाने वाले अफसर और कर्मचारियों पर होनी चाहिए। ये बात भी गौर करने लायक है कि सिर्फ सेल्फी से ही कर्मचारियों की उपस्थिति दर्ज की जा रही है, तो उन पर भी कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने सेल्फी नहीं भेजी।
बताया गया है कि शिकायत जांच समिति में अभी महिला एवं बाल विकास विभाग की दो सदस्य हैं जबकि एक सदस्य कुमारी सुनीता रेड्डी राजस्व विभाग की हैं। सुनीता रेड्डी ने आरोप लगाया है कि विभाग में महिला कर्मचारियों को प्रताड़ित किया जाना प्रतीत हो रहा है और एकतरफा जांच ना कर एकतरफा कार्रवाई की जा रही है।
विवाद के पीछे का खेल
जिला कार्यक्रम अधिकारी को काफी काम रहता है और कार्यालय के ही दीगर कर्मचारी उनकी मौजूदगी और गैर मौजूदगी में अपनी कार्यशैली से अपनी तरह से नफे की तलाश में रहते हैं। इनमें एक बाबू भी हैं और उनकी कार्यशैली से सखी सेंटर की महिलाओं प्रताड़ना झेलनी पड़ती है।
चूंकि दफ्तर का लेखा-जोखा भी इसी बाबू के हाथ में है तो फिर क्या, साहब उनकी ही बात सुनते हैं। चूंकि सखी सेंटर के कर्मी संविदा पर हैं, इसलिए उन्हें इस बेरोजगारी के दौर में नौकरी जाने का खतरा बना रहता है और चुप रह जाती हैं।
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