Indian Railways Coach Color: अगर आप ट्रेन में सफर करते हैं तो इस खबर पर आपको जरूर गौर करना चाहिए। आपमें से कई लोगों ने ट्रेन का रंग नीला देखा होगा।
अब इसे बदला आएगा। दरअसल वंदे भारत को छोड़कर ट्रेन के हर कोच नीले और लाल रंग के नजर आते थे।
आम लोगों को यह लगता था कि केवल रंग ही बदला है लेकिन ऐसा नहीं है। रंगों के साथ दोनों कोच में तकनीक भी अलग-अलग है। अब नीले रंग को लाल से बदला जायेगा।
नई तकलीफ से बने कोच
दरअसल नील कोच पुराने हैं और लाल कोच नई तकलीफ से बने हैं। ऐसे में भारतीय रेलवे ने अब बड़ा फैसला लिया है।भारतीय रेलवे ने नीले रंग के कोच को हटाकर लाल रंग से इसे बदलने की तैयारी शुरू की है ।
आईए जानते हैं दोनों में क्या अंतर है और कब तक इस कोच बदलने की प्रक्रिया को पूरा कर लिया जाएगा? मौजूदा समय में भारतीय रेलवे में दो तरह के कोच का इस्तेमाल किया जाता है आईसीएफ यानी इंटीग्रल कोच फैक्ट्री और एलएचबी लिंक हॉफमैन बुश।
आईसीएफ – एलएचबी में अंतर
बता दे की आईसीएफ पुरानी तकनीक है जबकि LHB नई तकनीक है। आईसीएफ के कोच नीले और LHB के लाल रंग के कोच होते हैं। जैसा की राजधानी के ट्रेनों में देखने को मिलता है।
भारतीय रेलवे द्वारा धीरे-धीरे सभी पुरानी तकनीक वाली चीजों को हटाकर नई तकनीक वाले एलएचबी कोच से इसे बदलने का निर्णय लिया गया है।
मार्च तक 2000 के करीब LHB कोच का निर्माण
भारतीय रेलवे के अनुसार मार्च तक 2000 के करीब LHB कोच का निर्माण किया जा रहा है। यह स्लीपर और जनरल श्रेणी के होंगे। ऐसे में प्रत्येक मेल और एक्सप्रेस में चार-चार कोच लगाए जाएंगे।
इस तरह 1300 कोच इस ट्रेन में लगाए जाएंगे। इसकी डेडलाइन्स दिसंबर तक की गई लेकिन बचे हुए 700 एसएसबी कोच को मेल एक्सप्रेस के आईसीएफ से रिप्लेस किया जाएगा। जिसकी डेड लाइन मार्च 2025 तक निर्धारित की गई है।
बता दे कि मौजूदा समय में कुल 740 रैक आईसीएफ के दौड़ रहे हैं। रेलवे के इन सभी डब्बे को LHB से बदलने के लिए डेडलाइन तय कर दी गई है। 2026 27 तक इसे बदलने का लक्ष्य रखा गया है। बता दे कि यह तकनीक 24 साल पुरानी है।
एलएचबी कोच की तकनीक
एलएचबी कोच की तकनीक कपूरथला पंजाब में स्थित है। यह तकनीक 2000 में जनवरी से भारत लाई गई थी। स्टेनलेस स्टील से इसे बनाया जाता है, इस वजह से यह हल्के होते हैं। इसमें डिस्क ब्रेक का इस्तेमाल किया जाता है।
जिससे इसके अधिकतम स्पीड 200 किलोमीटर प्रति घंटे की होती है इसके रखरखाव में भी कम खर्च आता है और इसमें बैठने की क्षमता भी अधिक होती है। बता दे कि इसमें स्लीपर में 80 थर्ड एसी में 72 सीट होते हैं।
नीले रंग के कोच में कमियां
बात करें नीले रंग के कोच ICF की तो यह इंटीग्रल कोच फैक्ट्री चेन्नई में 1952 में शुरू की गई थी। आईसीएफ कोच स्टील के बने होते हैं। इस वजह से भारी होते हैं। वहीं इसमें एयर ब्रेक का प्रयोग होता है।
इसके अलावा इसके रखरखाव में अधिक खर्च होता है। यात्रियों के बैठने की क्षमता भी इसमें कम होती है।जिसमें स्लीपर में कुल सीट 72 और थर्ड एसी में 64 होते हैं। वही दुर्घटना के समय यह एक के ऊपर एक चढ़ जाते हैं।
ICF की जगह LHB से बदला जाएगा
इसके बाद अब रेलवे द्वारा नई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए इसे बदलने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। ऐसे में अब आपको ट्रेन में नीले रंग के डब्बे नहीं दिखाई देंगे।
रेलवे द्वारा इस लाल रंग से बदलने का फैसला किया गया है। जिसके साथ ही अब आईसीएफ की जगह इसे एलएचबी से बदला जाएगा।
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