Employees Regularization, Employees Benefit, Contract Employees Regularization, Regular Employees : संविदा कर्मचारियों के लिए महत्वपूर्ण खबर है। संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर नए नियम तैयार किए गए थे।
इसके लिए नए नियमावली बनाने पर हरी झंडी दी गई थी। अब मंत्रिमंडल द्वारा दी गई इस सहमति के बाद एक नया विवाद खड़ा हो गया है।
उपनल कर्मचारी खुद को नियमितीकरण से दूर रखे जाने पर नाराज दिखाई दे रहे हैं। इसके साथ ही दस्तावेज के साथ कुछ ऐसे सवाल भी है, जो सरकार के कार्य प्रणाली को लगातार कटघरे करने में खड़ा कर रहे हैं।
संविदा तदर्थ और दैनिक वेतन पर कर्मचारियों को रखे जाने पर रोक
सरकार द्वारा 6 फरवरी 2003 को शासन ने संविदा तदर्थ और दैनिक वेतन पर कर्मचारियों को रखे जाने पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी।
आदेश में स्पष्ट किया गया था कि यदि किसी विभाग की कर्मचारी की जरूरत होगी तो उसके लिए कार्मिक विभाग की अनुमति के बाद मंत्रिमंडल के अनुमोदन के साथ एक निश्चित समय के लिए ही कर्मचारियों को रखा जाएगा।
आदेश ने 2003 के इस आदेश का जिक्र
खास बात यह है कि 15 नवंबर 2023 को अपर मुख्य सचिव वित्त आनंद वर्धन ने एक बार फिर से अपने आदेश ने 2003 के इस आदेश का जिक्र करते हुए स्पष्ट किया कि संविदा तदर्थ और दैनिक वेतन के रूप में कर्मचारियों की तैनाती पर रोक लगाई गई है।
इसके बावजूद भी कई विभाग अपने स्तर पर कर्मचारियों को मासिक रूप से वेतन का भुगतान कर रहे हैं।
कर्मचारी संगठन ने उठाये सवाल
इस आदेश में साल 2003 के पुराने आदेश का जिक्र करना यह स्पष्ट कर रहा है कि संबंधित आदेश अभी भी लागू है।
ऐसे में ऊर्जा विभाग के उपनल कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कवि का कहना है कि ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि जब 2003 से ही राज्य में तदर्थ संविदा और दैनिक वेतन के रूप में कर्मचारियों की नियुक्ति पर रोक लगाई गई है तो संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए नियमावली सरकार किस आधार पर और किसके लिए तैयार कर रही है ?
किस नियम के तहत संविदा पर भर्ती
विधानसभा के बैक डोर से कर्मचारियों की भर्ती के मामला अभी भी अटका हुआ है। इतना ही नहीं कर्मचारी संगठन द्वारा कई सवाल उठाए गए हैं।
जिसमें कहा गया कि जब 2003 से ही कर्मचारियों की तैनाती पर रोक लगाई गई है तो किस नियम के तहत विभाग के कर्मचारियों की संविदा पर भर्ती की जा रही है।
कर्मचारी संगठन का कहना है कि साल 2003 में रोक लगाई जाने के बाद भी सरकार ने उपनल का गठन करते हुए इसके जरिए आउटसोर्स कर्मचारी की तैनाती के निर्देश जारी किए थे।
लेकिन विभिन्न नियम का पालन करते हुए उनकी तैनाती करने के बावजूद उनके नियमितीकरण पर फिलहाल सरकार की तरफ से कोई बात नहीं की जा रही है।
यह था मामला
ऐसे में राज्य सरकार ने पहली बार संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर चर्चा की है।
इससे पहले 2011 में भाजपा सरकार ने संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर पॉलिसी तैयार करते हुए 10 साल सेवा देने वाले संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का फैसला किया था।
2013 में इस पॉलिसी की जगह एक नई पॉलिसी लाई गई थी और कांग्रेस सरकार ने 5 साल की सेवा देने वाले से संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का प्रावधान किया था।
जिसके बाद साल 2016 में एक नई पॉलिसी आई। जिसमें 5 साल के इसी नियम को आगे बढ़ाया गया। हालांकि इसके खिलाफ कुछ कर्मचारी हाईकोर्ट पहुंच गए थे और हाई कोर्ट ने 2016 की पॉलिसी को रद्द करने का निर्णय सुनाया।
हाई कोर्ट के इस आदेश के दौरान नई पॉलिसी पर जो बात कही गई है उसी के तहत अब राज्य सरकार संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण का रास्ता तैयार कर रही है।
नियमितीकरण को लेकर कई सवाल
ऐसे में उपनल कर्मचारी द्वारा को सवाल पूछे गए हैं। राज्य सरकार को स्पष्ट करना होगा कि एक तरफ संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण का रास्ता चला जा रहा है।
जबकि दूसरी तरफ हाई कोर्ट ने ओपन कर्मचारियों को समान कार्य के बदले समान वेतन या नियमितीकरण देने के आदेश दिए थे।
जिसको सरकार कोर्ट में चुनौती देकर उपनयन कर्मचारियों के नियमितीकरण के खिलाफ खड़ी हो गई है।
ऐसे में अब उत्तराखंड की धामी सरकार से उपनल कर्मचारी द्वारा नियमितीकरण को लेकर कई सवाल पूछे गए हैं। एक बार फिर से नियमितीकरण पर सरकार को घेरने की तैयारी में है।
इधर उत्तराखंड सरकार द्वारा संविदा कर्मचारियों को बड़ी राहत देते हुए उनके नियमितीकरण के लिए नई नियमावली बनाने की हरी झंडी मंत्रिमंडल में दी गई है इस पर जल्दी प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
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