- फ्यूज़ बल्ब से अंधियारा दूर करने की कोशिश…
विपक्ष इन दिनों ऐसे बुरे दौर से गुजर रहा है कि उनके पास उपचुनाव में प्रचार के लिए भी कोई बड़ा चेहरा नहीं है। खासकर बस्तर में तो हालात बद से बदतर हो चले हैं। यही वजह है कि विपक्ष हारे हुए पूर्व मंत्रियों के सहारे चुनावी नैया पार लगाने की कोशिश में है। बड़े अंतर से हारे हुए ऐसे मंत्री व नेता कार्यकर्ताओं की बैठकों में शामिल तो हो रहे हैं लेकिन बुझे हुए चेहरे के साथ। ऐसे में वे कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र भला कैसे दें। हाल ही में ऐसे नेतागण उपचुनाव के लिए हुई अहम बैठक में भी शिरकत करने पहुंचे थे। लेकिन मीडिया के सामने इन्होंने चुप्पी साधे रखी। शायद उन्हें यही डर सता रहा था कि कहीं कोई मीडियाकर्मी ये न पूछ बैठे कि जब आप अपनी ही सीट नहीं बचा सके तो फिर कार्यकर्ताओं को चुनाव जीतने की टिप्स भला क्या देंगे।
- दावेदारी में विश्वास कम और उत्साह ज्यादा…
सालों बाद ऐसा हुआ जब दंतेवाड़ा में कर्मा फैमिली को टिकट के लिए दीगर दावेदारों से कॉम्पीटीशन करना पड़ गया। इस बार सत्ताधारी पार्टी में टिकट की ऐसी होड़ मची कि कर्मा परिवार से इतर भी कुछ लोगों ने दावेदारी ठोक दी। हालांकि, ऐसे लोगों में विश्वास कम और उत्साह ज्यादा नजर आया। इनमें से एक नेताजी ऐसे भी थे जिन्होंने दावेदारी के लिए पीसीसी चीफ को पत्र तो सौंपा लेकिन इसके फौरन बाद वे अपने मित्रों के साथ विदेश में छुट्टियां बिताने चले गए। ऐसे में पार्टी आलाकमान ने भी उनकी दावेदारी को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। दरअसल, नेताजी को खुद ही भरोसा नहीं था कि पार्टी उनके नाम पर विचार भी करेगी। वैसे, बताते चलें कि पिछले चुनाव में नेताजी अपने गृहग्राम में भी पार्टी को बढ़त नहीं दिला सके थे। लिहाजा पार्टी ने भी इनसे किनारा करने में ही भलाई समझी।
- कहीं छवि चमकाने की कोशिश तो नहीं…
कैशलेस विलेज के एक नेता लोगों की मदद करते नहीं थकते। खासकर कई दिव्यांगजनों की इन्होने खुले दिल से सेवा की है। गौर करने वाली बात ये है कि जिले में जब-जब आचार संहिता लगती है ये जनाब अपने अभियान में जुट जाते हैं। ऐसे मौकों पर इनकी सक्रियता देखते ही बनती है। इनके विरोधी इसे टिकट की दावेदारी मजबूत करने की कवायद बताते हैं। दरअसल, नेताजी की कोशिश यही रहती है कि इस तरह के कार्यों से उनकी उजली छवि बने और पार्टी उनके नाम पर विचार करे। इसी कोशिश में वे आचार संहिता के दौरान भी दिव्यांगों की मदद कर उसे सोशल मीडिया में वायरल कर वाहवाही बटोरने से नहीं चूकते। बीते विस चुनाव में भी इन्होंने ऐसी ही कोशिशें की थी। हालांकि, ऐसा करने से उन्हें टिकट तो नहीं मिल रहा पर दिव्यांगों की मदद जरूर हो रही है।
- एक म्यान में दो तलवार…
बीजापुर जिले के एक जनपद पंचायत में सीईओ की कुर्सी के लिए दो अफसरों में नूरांकुश्ती चल रही है। इस कुर्सी पर दोनों ही अपना दावा ठोक रहे हैं। नौबत यहां तक आ गई कि चेम्बर में दो कुर्सियां तक लगानी पड़ गई। मातहत कर्मचारी भी हैरान कि आखिर ड्यूटी बजाएं तो किसकी। बहरहाल, कुर्सी की यह लड़ाई थमती नहीं दिख रही है। हुआ यूं कि पुराने सीईओ छुट्टी पर गए तो दूसरे जनपद के सीईओ को प्रभार सौंपा गया। इसी बीच परिस्थितियां बदली और उनका तबादला इसी जनपद में कर दिया गया। कुछ अरसे बाद जब पुराने साहब छुट्टी से वापस लौटे तो उन्हें पता चला कि उनकी कुर्सी छिन गई है। पर वे भी बड़े घाघ ठहरे। उन्होंने आला अफसरों के इस फैसले के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और स्टे ऑर्डर लेकर आ गए। अब नए साहब जाएं तो कहां जाएं। वे चार्ज नहीं देने पर अड़ गए। बाद में वे किसी तरह प्रभार सौंपने राजी हुए तो अब पुराने सीईओ चार्ज लेने से कतरा रहे है। उच्च अधिकारियों के फैसले को नकार चुके पुराने सीईओ चार्ज लेने की बजाय छुट्टी लेकर चले गए हैं। खबर है वे अब यहाँ से ट्रांसफर की जुगाड़ में लगे हुए हैं।
- सत्ता बदली पर नहीं बदली शराब नीति…
बीजापुर जिले में सरकारी शराब की कालाबाजारी इन दिनों सुर्ख़ियों में है। भोपालपटनम ब्लाक के हरेक गांव-गली में शराब की अवैध बिक्री धड़ल्ले से चल रही है। आपको समय पर दवा मिले न मिले, कोचियों के माध्यम से दारू आसानी से मिल जाती है। आश्चर्य की बात यह है जिस ब्राण्ड की बोतल शराबखाने में नहीं मिलती है वही ब्रांड आसानी से बाहर कोचियों के पास मिल जाती है। शराब का यह गोरखधंधा सीमावर्ती महाराष्ट्र तक पैर पसार चुका है। राज्य की सरहद से लगे महाराष्ट्र में शराब पीना व बेचना सख्त मना है। लेकिन छत्तीसगढ़ की शराब नदी पार कर गढ़चिरोली जिले में सप्लाई की जाती है। लोगों का कहना है कि जब सरकार ही शराब बेचने पर आमादा हो तो कार्रवाई की उम्मीद भी किससे करें।
@ वेदप्रकाश संगम » महफूज़ अहमद » मो. इमरान खान
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