वन अमला अड़ा तो अफसर को होगी कैद ! पामेड़-टेकलेर रोड के किनारे बेजा खुदाई और पेड़ों की कटाई
पंकज दाऊद @ बीजापुर। पामेड़ और टेकलेर के बीच प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनाई जा रही सड़क के लिए सैकड़ों पेड़ जमींदोज कर दिए गए हैं और वहां की मिट्टी का इस्तेमाल सड़क के लिए किया जा रहा है।
फारेस्ट क्लियरेंस के बिना पेड़ों की कटाई और जंगल में खुदाई के केस में कार्यादेश जारी करने वाले कार्यपालन अभियंता को 15 दिनों के साधारण कारावास का प्रावधान है। अब देखना ये है कि इस केस में वन अमला कितनी संजीदगी दिखाता है।
सूत्रों के मुताबिक जिले में जंगलों से होकर गुजरने वाली पीएमजीएसवाय की ज्यादातर सड़क के लिए फारेस्ट क्लियरेंस नहीं लिया गया है। बताते हैं कि फारेस्ट क्लियरेंस काफी जटिल प्रक्रिया है। क्लियरेंस मिलने की उम्मीद बहुत कम होती है और इस थकाऊ प्रक्रिया से बचने के लिए विभाग क्लियरेंस लिए बिना ही सड़क बनाना चालू कर देता है।
ऐसा ही पामेड़-टेकलेर रोड के लिए भी हुआ। वन अमले की अनुमति के बगैर ठेकेदार के कर्मचारी जंगल में दाखिल हुए और काम करना चालू किया। कायदे से मिट्टी को बाहर से लाना चाहिए लेकिन उन्होंने सड़क किनारे के सैकड़ों पेड़ों को गिराकर यहां से ब्लेड गाड़ी से मिट्टी निकालनी शुरू कर दी।
सड़क में मिट्टी तो डाली जा रही है लेकिन इस पर रोड रोलर नहीं चलाया जा रहा है। सात किमी की सड़क में से करीब ढाई से तीन किमी तक काम चार साल पहले हुआ। इसके बाद काम रोक दिया गया। चार साल पहले बनी सड़क में कहीं भी पुल-पुलियों का नामोनिशां नहीं है। समझा जाता है कि इसका भी भुगतान विभाग ने ठेकेदार को कर दिया।
लकड़ी और गाड़ियों की जप्ती के लिए पहुंचे वनकर्मी
पामेड़ रेंजर मनोज बघेल के मुताबिक टेकलेर रोड पहले से स्वीकृत है। पेड़ों की कटाई और मिट्टी निकालनेे के लिए ठेकेदार ने संपर्क नहीं किया। वनकर्मियों को कटे पेड़ों को लाने और मिट्टी खुदाई में इस्तेमाल में लाए गए ब्लेड ट्रैक्टर की जप्ती के लिए वनकर्मियों को भेजा गया है।
सजा का है प्रावधान
डीएफओ अशोक पटेल ने बताया कि फारेस्ट क्लियरेंस के बिना सड़क का कार्यादेश जारी करने वाले अफसर को 15 दिनों के साधारण कारावास की सजा का प्रावधान है, बशर्ते ये सड़़क 1980 के बाद बनी हो। डीएफओ के मुताबिक पहले फारेस्ट क्लियरेंस का दफ्तर सीपी एण्ड बरार की राजधानी नागपुर में था। कुछ दिनों पंहले इसकी शाखा रायपुर में खुली है।
उनके मुताबिक 1980 से पहले बनी सड़क के चौड़ीकरण के दौरान पेड़ों की कटाई के लिए फारेस्ट क्लियरेंस लेना जरूरी है। तारलागुड़ा सड़क पहले से बनी थी और इसके चौड़ीकरण के लिए 30 करोड़ रूपए का हर्जाना वसूल किया गया।
वन विभाग ऐसे मामलों में पेड़ों की कटाई और ढुलाई का पैसा भी लेता है। इसके अलावा कोई भी कंपनी जंगल के एवज में उससे दो गुनी जमीन विभाग लेता है ताकि वैकल्पिक पौधरोपण किया जा सके।
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