तंदरूस्ती की मुहिम में शामिल हो गई हैं एक्सपोर्ट क्वालिटी लेयर मुर्गियां… साल में 300 अण्डे देने की क्षमता है केरल की इस बर्ड में
पंकज दाऊद @ बीजापुर। कुछ ही दिनों में केरल की टाॅप मोस्ट लेयर मुर्गियां बीवी 380 इस जिले में थोक में अण्डे देने लगेंगी और ये अण्डे सुपोषण अभियान में काम आएंगे। विदेशों में निर्यात की जाने वाली इन मुर्गियों में साल में 300 अण्डे देने की कैपिसिटी है। फिलहाल इसे महिला स्व सहायता समूहों को पालन के लिए दिया जाएगा।

कलेक्टर रितेश अग्रवाल की पहल पर जिले में तंदरूस्ती की ये मुहिम जल्द शुरू होने वाली है और उन्होंने इसके लिए जिला खनिज न्यास एवं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से इसे हरी झण्डी दे दी है। उप संचालक पशुधन सेवाएं डाॅ एपी दोहरे ने बताया कि जिले के 42 स्वसहायता समूहों को एक-एक यूनिट मुर्गियां दी जाएंगी।
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— Khabar Bastar (@khabarbastar) October 31, 2020
अभिषेक हैचरी केरल से मुर्गियों को मंगाया जाएगा। एक यूनिट में पचास मुर्गियां होंगी। केरल से पिंजरे भी मंगा लिए गए हैं। अभी इन्हें असेंबल किया जा रहा है। जब मुर्गियां बीस सप्ताह की हो जाती हैं तो ये अण्डे देने लग जाती हैं और आगे 52 सप्ताह यानि एक साल तक अण्डे देती हैं। आदर्श स्थिति में ये साल में 300 अण्डे देती हैं।
जब केरल से यहां मुर्गियां पहुंचेंगी तो ये तुरंत अण्डे देना शुरू कर देंगी। इस तरह से साल में 42 यूनिट से करीब छह लाख तीस हजार अण्डे निकलेंगे। इनकी कीमत करीब 41 लाख रूपए होगी। एक साल में ही एक यूनिट का खर्च निकल आएगा।

दरअसल, अण्डे महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से संचालित आंगनबाड़ियों में सप्लाई किए जाएंगे। विभाग इसे छह रूपए पचास पैसे की दर से खरीदेगा। इसके अलावा पोटा केबिन एवं आश्रम शालाओं में भी इसकी आपूर्ति की जाएगी।
आम के आम गुठली के दाम
जब एक साल में लेयर मुर्गियां अण्डे कम देने लगे और दाना पानी ज्यादा खाने लगे तो इसे स्व सहायता समूह बेच देगा। इसकी कीमत प्रति किलो दो सौ रूपए है। इससे भी समूहों को फायदा होगा।
चूंकि ये हुबहू असील प्रजाति की मुर्गियों की तरह दिखती हैं, इसलिए इसकी मांस के तौर पर भी खासी मांग है। इसके अलावा मुर्गियों के मल भी खाद के तौर पर बेचे जा सकते हैं।
एक ही टीका
लेयर बीवी 380 की खासियत ये है कि इसे एक बार ही टीका लगता है। इसी खासियत की वजह से इस पर खर्च थोड़ा कम है। इसी खासियत की वजह से अफ्रीकी देशों के अलावा अमरीका, डेनमार्क एवं दीगर देशों में इसकी डिमाण्ड अधिक है।
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