बेटी को पैतृक संपत्ति में हक का सुप्रीम कोर्ट का फैसला हिन्दू लाॅ के हिसाब से… आदिवासी नेता बोले— पारंपरिक प्रथा में ऐसा नहीं
पंकज दाऊद @ बीजापुर। छग के आदिवासी नेताओं ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने बेटी को पैतृक संपत्ति के हक का फैसला दिया है लेकिन ये जनजातियों के कस्टमिरी लाॅ से मेल नहीं खाता है। आदिवासियों की प्रचलित पारंपरिक प्रथा में बेटी को पैतृक संपत्ति का हक नहीं है।
छग सर्व आदिवासी समाज के नेताओं ने यहां पत्रकारों से चर्चा में ये बात कही। यहां बाढ़ के हालात का जायजा लेने समाज के संरक्षक एवं पूर्व केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री अरविंद नेताम, बस्तर जिलाध्यक्ष कौशल नागवंशी, सचिव दशरथ कश्यप, अविभक्त मप्र में पूर्व नेता प्रतिपक्ष रहे राजाराम तोड़ेम एवं चित्रकोट के पूर्व विधायक लच्छूराम कश्यप पहुंचे।
आदिवासी नेताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के बंटवारे को लेकर जो फैसला दिया है, वह हिन्दू लाॅ के हिसाब से है ना कि आदिवासी कस्टमिरी लाॅ के हिसाब से। इस पर समाज विचार कर रहा है। आदिवासी समाज में बेटी अपने ससुराल की संपत्ति की हकदार होती है।
आदिवासी नेताओं ने कहा कि समाज 8—10 साल से विपदाग्रस्त इलाके में अपनी ओर से राहत देता है और बीजापुर आने का कारण भी यही है। यहां बारिश ने काफी तबाही मचाई है। राहत का मकसद लोगों को ये महसूस होने देना है कि उनकी समाज को चिंता है और भावी पीढ़ी भी इस बात को समझे।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि प्रभावित लोगों को पूरी तरह सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उन्हें खुद जागरूक होना होगा। उन्होेंने कहा कि वे बाढ़ के प्रभाव के बारे में फीड बैक भी ले रहे हैं ताकि इस बात को वे राज्य सरकार और केन्द्र सरकार तक बेहतर ढंग से पहुंचा सकें।
बोधघाट पन विद्युत परियोजना पर आदिवासी नेताओं ने कहा कि डूबान में आने वाले गांव के लोगों को बेहतर पुनर्वास दिया जाना चाहिए। उन्होंने बस्तर में प्राथमिक शिक्षा के लिए स्थानीय बोली या भाषा को माध्यम बनाने की बात को रेखांकित किया। बस्तर के स्वायत्तशासी राज्य के सवाल पर अरविंद नेताम ने कहा कि ये आजादी के वक्त होना था। अब ये थोड़ा मुश्किल है।
सारकेगुड़ा की रिपोर्ट पर भी नजर
आदिवासी नेताओं ने कहा कि सारकेगुड़ा के मामले में आयोग की रिपोर्ट आए काफी समय हो गया है लेकिन सरकार मौन है। समाज सरकार से इस पर भी चर्चा कर रहा है। भूमकाल विद्रोह की पूरी जानकारी किसी के पास नहीं है और इससे शहीदों के स्मारक बनाने में परेशानी हो रही है। वैसे शहीद स्मारक बनाए जा रहे हैं।
रिहाई मे देरी क्यों
आदिवासी नेताओं ने कहा कि नक्सल के नाम पर जेल में बंद निर्दोष आदिवासियों की रिहाई को लेकर मौजूद कांग्रेस सरकार ने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था। इसके लिए सर्व आदिवासी समाज के दबाव में सरकार ने एक आयोग का गठन भी किया। इसमें देर नहीं होनी चाहिए।
इस मामले में समाज दबाव बना रहा है और मुख्यमत्री व गृहमंत्री के अलावा डीजीपी से चर्चा कर रहा है लेकिन बेहतर होता कि विधायक एवं सांसद भी इसमें दिलचस्पी लेते। मंत्रीमण्डल में भी इस पर चर्चा होनी चाहिए।
धर्मांतरण पर रोक की कोशिश
आदिवासी इलाकों में धर्मांतरण के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस पर विचार किया जा रहा है क्योंकि इससे आदिम संस्कृति पर खतरा मण्डरा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रस्ताव लाने की कोशिश की जा रही है कि जो भी धर्म परिवर्तन करेगा, उससे आदिवासियों को मिलने वाले फायदे से वंचित होना पड़े।
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