बारूदी धमाकों में फंस गई तीखुर की ‘जान’… नक्सली हलचल के चलते आवक कम होने का अंदेशा
पंकज दाऊद @ बीजापुर। अठारवीं सदी में भारतीय उप महाद्वीप की मुख्य वाणिज्यिक फसल तीखुर की जड़ों को इन दिनों खास इलाकों में माओवादी हलचल और मुठभेड़ों के चलते निकालने में आदिवासियों को मुश्किल हो रही है। जड़ों को निकालने के ऐन सीजन में उन इलाकों में ही ज्यादा नक्सली हलचल हो रही है, जहां ये हल्दी प्रजाति की फसल पाई जाती है।
जिले में वनोपज के मामले में दो ही बड़े बाजार हैं। एक तो गंगालूर और दूसरा बासागुड़ा। इन दोनों इलाकों में इन दिनों आए दिन मुठभेड़ों और बारूदी धमाकों की खबरें आ रही हैं।
गल्ले के कारोबार से जुड़े कारोबारियों का कहना है कि तीखुर का सीजन तो आ गया है लेकिन इस साल इसकी आवक कम होने का अंदेशा है क्योंकि खौफजदा आदिवासी तीखुर की जड़ें निकालने जंगल जाने से हिचक रहे हैं। एक कारोबारी की मानें तो अकेले बासागुड़ा इलाके से 50 से 60 क्विंटल तीखुर निकलता है।
बासागुड़ा इलाके के फुतकेल, चिन्नागेलूर, पेदागेलूर, मल्लापल्ली, कोरसागुड़ा, गुण्डम, तर्रेम, धरमापुर, चिलकापल्ली, पोलमपल्ली, मारूड़वाका एवं अन्य गांवों के आसपास जंगल से आदिवासी तीखुर की जड़ों को निकालते हैं और इसे पीसकर धोते हैं। इसे फिर सूखाकर वे व्यापारियों को बेचते हैं।
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— Khabar Bastar (@khabarbastar) January 7, 2021
तीखुर राष्ट्रीयकृत वनोपज नहीं है और इसलिए इस पर वन विभाग का एकाधिकार नहीं है। हालांकि दो साल से वन विभाग 120 रूपए किलो के समर्थन मूल्य पर इसकी खरीदी कर रहा है। इधर, एक गल्ला व्यापारी ने बताया कि गांव के लोग उन्हें 200 रूपए पैली यानि करीब सवा किलो की दर से उन्हें बेचते हैं।
सामान्य वन मण्डल के डीएफओ अशोक कुमार पटेल ने बताया कि तीखुर की खरीदी शुरू कर दी गई है। इस साल 100 क्विंटल खरीदी का लक्ष्य तय किया गया है।
कहां मिलता है तीखुर
तीखुर यानि क्यूरूमा अन्गुस्तिफोलिया ( वानस्पतिक नाम ) जिंजीबिरेसी कुल का मेंबर है। अकेले क्यूरूमा की अस्सी प्रजातियां पाई जाती हैं। ये भारत में महाराष्ट्र, मप्र, हिमाचल प्रदेश, ओड़िशा, छत्तीसगढ, तमिलनाडु, केरल आदि प्रदेशों में मिलता है। इसके अलावा ये बर्मा, लाओस, नेपाल एवं पाकिस्तान में भी पाया जाता है। ये मूलतः भारतीय उप महाद्वीप की प्रजाति है।
ईस्ट इंडियन अरारोट
इसे ईस्ट इंडियन अरारोट या संकीर्ण लीक हल्दी भी कहा जाता है। मणीपुरी में इसे वियन और मलयालम में कोवा कहा जाता है। ये स्टार्च का स्त्रोत है और बच्चों के लिए अच्छा पूरक पोषण आहार है। इससे निकाला गया तेल एंटी फंगल दवा के तौर पर काम आता है। इसके और भी कई औषधीय गुणधर्म हैं।
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