बयानवीरों ने बढ़ाई मुसीबत…
अपने बेतुके बयानों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले सूबे के एक मंत्री और एक Ex मिनिस्टर के बीच जुबानी जंग फिर छिड़ चुकी है। उपचुनाव के बहाने ये दोनों बयानवीर आमने-सामने हैं। वैसे, दोनों की यह जंग पुरानी है। दरअसल, कुछ अरसा पहले पूर्व मंत्री ने सीएम के एक बयान पर तंज कसा था। यह बात बस्तर से इकलौते मंत्री को नागवार गुजरी। कुछ दिनों बाद पूर्व मिनिस्टर के इलाके में पहुंचे मंत्रीजी ने मौका देख अपनी भड़ास निकाली और ‘पेट दर्द होने पर महुआ दारू पीने’ की नसीहत दे डाली। अब उपचुनाव में पूर्व मंत्री ने सत्ताधारी पार्टी पर दादागिरी का आरोप लगाकर घेरने की कोशिश की। इस पर मंत्री जी कहाँ रुकने वाले थे, उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर कह दिया कि Ex मिनिस्टर दादागिरी अपने इलाके में दिखाएं यहाँ नहीं चलने वाली। अब बारी पूर्व मंत्री की थी, उन्होंने फौरन बयान जारी कर मंत्री जी पर ही चुनाव में विपक्षी पार्टी की मदद करने का आरोप मढ़ दिया। बहरहाल, इन बयानों से पार्टियों को फायदा हो या ना हो नेताओं को सुर्खियों में बने रहने का मौका जरूर मिल रहा है। और वक्त का तकाजा भी शायद यही है।
ज़िद करो दुनिया बदलो…
प्रदेश के इकलौते क्षेत्रीय दल होने का दावा करने वाली पार्टी के मुखिया इन दिनों दक्षिण बस्तर में डेरा डाले हुए हैं। उप चुनाव के प्रचार में वे अपने लाव लश्कर के साथ पहुंच चुके हैं। उनकी जिले में आमद भी धमाकेदार रही। ठहरने का इंतजाम नहीं होता देख साहब ने जिले के बड़े साहब के बंगले के सामने ही अपना कारवां रूकवा दिया और जिद पर अड़ गए कि रात यहीं सड़क पर बिताएंगे। उनके इस हठ से हैरान अफसर करें भी तो भला क्या! चुनावी माहौल में किसे तवज्जो दें और किसे नहीं। इसी उधेड़बुन में अफसर मैराथन बैठकें करने लगे। तब तक साहब ने मीडिया को बुला बयान जारी कर दिया कि सूबे के मुखिया उनसे डरते हैं। उनके प्रचार करने से सत्ताधारी दल को मुश्किलें हो सकती है लिहाजा उन्हें रूकने नहीं दिया जा रहा है। यह सियासी ड्रामा काफी देर तक चला। काफी कश्मकश के बाद साहब के लिए कमरे की व्यवस्था की गई इसके बाद उनका कारवां वहां से आगे बढ़ सका।
पीसी में हो गई पेशी…
उपचुनाव में चल रहे सियासी दांवपेंच के बीच वायरल हुए ऑडियो ने सत्ताधारी पार्टी को बैकफुट पर ला दिया था। आरोप लगा कि ऑडियो में बुआ अपने भतीजे को धमका रही हैं। बैठे बिठाए मुद्दा मिलते ही विपक्ष की तो बांछे खिल गई। पार्टी के नेताओं ने मुद्दे को भुनाने फौरन मीडिया को बुला लिया। आनन-फानन में कथित पीड़ित को मीडिया के सामने पेश भी किया गया पर होमवर्क कराए बिना। सो गड़बड़ तो होनी ही थी, और हुआ भी वही। दरअसल, पीड़ित ने बोलना शुरू ही किया था कि फलां प्रोग्राम कैंसल कराने बुआ ने मुझे धमकाया। इसी बीच एक मीडियाकर्मी ने उससे मोबाइल मांगा और डिटेल चेक किया। इस तफ्तीश में साफ हुआ कि ऑडियो तो तीन महीने पुराना है। अब तो पीसी में बैठे नेताओं की सूरत देखने लायक थी। उम्मीदों पर पानी फिरता देख एक पूर्व मंत्री तो वहां से तुरंत खिसक लिए। वहीं दूसरे पूर्व मंत्री और एक पूर्व विधायक बगलें झांकने लगे।
चुनावी जंग में उतरे तीन पूर्व कलेक्टर…
हाईप्रोफाइल हो चुके उपचुनाव में सियासी दलों के बीच जंग के हालात बन गए हैं। शह और मात के खेल में पार्टियों ने अपने तुरूप के इक्कों को मैदान में उतार दिया है। चुनाव प्रचार में तीन पूर्व कलेक्टर भी जोर आजमाइश कर रहे हैं। दक्षिण बस्तर की आबो हवा से अच्छी तरह वाकिफ एक पूर्व आईएएस को विपक्षी दल ने मैदान में उतारा है। कभी यहां कलेक्टरी कर चुके महोदय अब वोट के लिए गलियों की खाक छान रहे हैं। वहीं सत्ताधारी दल के एक पूर्व कलेक्टर भी यहां बुलावे पर आ चुके हैं। इतना ही नहीं, खेती किसानी के सिंबॉल वाले दल के बड़े साहब ने भी यहां अपना डेरा डाल लिया है। उनकी तो जिले में एंट्री भी खासी धमाकेदार रही। वे पहले कलेक्टर रहने के साथ ही सूबे के सबसे बड़े पद पर भी काबिज रह चुके हैं। तीन-तीन पूर्व कलेक्टरों की मौजूदगी चुनाव में क्या गुल खिलाएगी, यह देखना दिलचस्प रहेगा।
सेल्फ़ी के भंवर में फंसे कार्यकर्ता…
15 साल तक सत्ता से दूर रहे एक पार्टी के कार्यकर्ता इन दिनों सेल्फी-सेल्फी खेल रहे हैं। बड़े नेताओं के काफिले के साथ जोंक की तरह चिपके रहने वाले छुटभैये नेताओं से स्थानीय नेता नाराज चल रहे हैं। बात यह है कि जब नेता किसी कार्यक्रम में पहुंचते हैं तो उनके इर्द-गिर्द घूमने वाले कार्यकर्ता स्थानीय नेताओं को पीछे कर नेताजी के बगल में फ़ोटो खिंचवाने खड़े हो जाते है। ऐसे में स्थानीय नेताओं को अपने इलाके में रोल अदा करने का मौका नहीं मिलता है, जिससे उनकी मायूसी भी जायज है। हाल ही में ऐसा ही एक वाक्या देखने को मिला। जिले के बड़े नेता बाढ़ पीड़ित ग्रामीणों का हालचाल जानने पहुंचे थे। उनके साथ चन्द कार्यकर्ता भी अपनी टीआरपी बढ़ाने पहुँच गए। ऐसे में जिन स्थानीय नेताओं को अपना रोल अदा करना था उन्हें एक सेल्फ़ी लेने का मौका तक नहीं मिला।
@ वेदप्रकाश संगम » महफूज़ अहमद » मो. इमरान खान
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