दोरली नृत्य के संरक्षण की पहल, जिला पंचायत सदस्य बसंत ताटी ने कलाकारों को भेंट की घुंघरू
मो इरशाद खान @ भोपालपटनम। आदिवासी संस्कृति में नृत्य-संगीत का बहुत महत्व है। जन्म से लेकर मृत्यु तक के विभिन्न संस्कारों तथा पूजा-अनुष्ठान से लेकर मेले-मड़इयों तक हर अवसर पर संगीत और नृत्य की विशेष भूमिका होती है। अपने सुख-दुख या हर्ष-विषाद को अभिव्यक्त करने का प्रभावी माध्यम भी नृत्य-संगीत ही है।
बीजापुर ज़िले की भोपालपटनम् तहसील में गोण्ड जनजाति के दोरला समुदाय की आबादी अधिक है। इस समुदाय के देवी-देवता,तीज-त्योहार,पूजा-अनुष्ठान, मेले-मड़ई का स्वरूप भी अन्य क्षेत्रों के गोण्ड समुदायों से कुछ भिन्न है। हम देख सकते हैं की उन्हीं के अनुरूप दोरला लोगों के नृत्य-संगीत की शैली भी अन्य क्षेत्रों के आदिवासी नृत्य-संगीत से अलग और विशिष्ट है।
ये संगीत के लिये ढोल, ढोलक, डफ आदि ताल वाद्य, शहनाई, बाँसुरी, सींग (तुरही) आदि सुषिर वाद्य तथा चिरतल (खड़ताल), मंजीरे, थाली, घंटी, घुँघरू आदि घन वाद्यों का प्रयोग नृत्य के साथ करते हैं।
घुँघरू बाँधे बिना दोरला नर्तकों के पैर थिरकने को तैयार ही नहीं होते हैं। पाँवों में घुँघरू बाँधते ही इनके तन-मन में उत्साह और पैरों में स्फूर्ति और गति आ जाती है और ये ‘जम-जजनका’ जैसी धुनों पर मस्त होकर मंडलाकार नृत्य को साकार करते हैं।
इसी को ध्यान में रखकर बीजापुर ज़िला पंचायत सदस्य बसंत राव ताटी ने भोपालपटनम् क्षेत्र के सकनापल्ली ग्राम के दोरला नर्तक दल को बीस जोड़ी घुँघरू भेंट किये।
श्री ताटी ने बताया कि संयुक्त मध्यप्रदेश के ज़माने में और आज के छत्तीसगढ़ में भी राज्य स्तरीय सांस्कृतिक आयोजनों में इस क्षेत्र के नर्तक दलों की भागीदारी अपेक्षाकृत कम रही है। उसका सबसे बड़ा कारण इस क्षेत्र के आदिवासी कलाकारों का संकोच और राज्य स्तर पर प्रदर्शन योग्य पारंपरिक वेशभूषा और वाद्ययंत्रों का अभाव रहा है।
इस क्षेत्र के आदिवासी कलाकर चाहते हैं कि अन्य क्षेत्रों की जनजातीय कलाओं की तरह बीजापुर ज़िले की, विशेष रूप से भोपालपटनम् क्षेत्र की कलाओं का भी देश-विदेश के आयोजनों में प्रतिनिधित्व हो। बसंत ताटी ने सकनापल्ली के दोरला नर्तक दल को प्रतीकात्मक रूप से घुँघरू भेंट कर इस महत्वकांक्षी अभियान की शुरुआत की।
ज़िला पंचायत सदस्य ताटी ने कहा कि इस क्षेत्र की कलाओं को प्रोत्साहित किये बिना लुप्त होती आदिवासी कलाओं का संरक्षण संभव नहीं है। अत: यह प्रयास किया जायेगा कि इस क्षेत्र की समस्त पारंपरिक कलाओं को चिन्हित कर उनके प्रोत्साहन और संरक्षण के लिये एक प्रभावी योजना मुख्यमंत्री जी के समक्ष रखी जाये।
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