गुम होने लगी है मेंढकों की टर्रटर्राहट ! बस्तर में 7 और प्रजातियों का पता लगाया जा रहा
पंकज दाऊद @ बीजापुर। नगरपालिका क्षेत्र में साल दर साल मेंढकों की टर्रटर्राहट में कमी आने लगी है और ये टर्रटर्राहट नगर के सरहदी इलाकों में इन दिनों सुनाई दे रही है।
कोई 7 से 8 साल पहले पालिका क्षेत्र के घनी आबादी वाले इलाकों में भी मेंढक दिख जाया करते थे और टर्रटर्राहट भी सुनाई पड़ती थी। इस बारे में काकतीय शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय धरमपुरा के प्राणीशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डाॅ सुशील दत्ता बताते हैं कि हर नगरीय इलाकों में ये बात अब आम हो गई है।
दरअसल, आबादी बढ़ने से फिनाइल, कीटनाशक एवं उर्वरक का इस्तेमाल होने लगा है। यहां तक कि ग्रामीण इलाके भी इससे अछूते नहीं हैं। डाॅ दत्ता ने बताया कि रसायन से प्रदूूषित जल में मेंढक नहीं रहते हैं।
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मेंढकों के शहरी इलाकों से दूर होने का एक और कारण ये भी है कि तेजी से बढ़ते शहरीकरण से बस्ती में बने गड्ढे पाट दिए गए और उस स्थान पर इमारतें बन गईं। इससे मेंढकों के रहवास में कमी आ गई।
डाॅ सुशील दत्ता के मुताबिक जूलाॅजिकल सर्वे आफ इंडिया के सहयोग से बस्तर में मेंढकों की नई प्रजातियों की खोज की जा रही है। उन्होंने बताया कि जल्द ही बस्तर में सात से आठ नई प्रजातियों को खुलासा हो जाएगा। अब तक बस्तर में सोलह प्रजातियों के मेंढकों के पाए जाने की रिपोर्ट है।
नगरपालिका क्षेत्र में मेंढकों की टर्रटर्राहट कम होने के बारे में शिक्षक अय्यूब खान कहते हैं कि हालिया सालों में बस्ती में मेंढकों की टर्रटर्राहट आती थी लेकिन अब बारिश के दिनों में भी ये टर्रटर्राहट गायब हो गई है।
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