गमलों में गोबर नहीं, अब गोबर के गमले… छग में पहली बार ऐसा प्रयोग
पंकज दाऊद @ बीजापुर। नगरपालिका ने नए उत्पाद बनाकर गोबर को मल्टीपर्पस बना दिया है और अब छग में पहली बार इससे अच्छे टिकाऊ गमले बनाए जा रहे हैं।
सीएमओ पवन कुमार मेरिया ने बताया कि जब से गोधन न्याय योजना शुरू हुई है, तब से रोजाना औसतन 10 क्विंटल गोबर पालिका के गोठान में आ रहा है। कृषि विज्ञान केन्द्र के सहयोग से अब गोबर से गमले बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
ये गमले काफी टिकाऊ हैं। अभी एक ही मशीन पालिका के पास है। और भी मशीनें मंगाई जा रही हैं। गमले पृथक-पृथक साइज के हैं। इनका रेट अभी 20 से 50 रूपए रखा गया है।
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— Khabar Bastar (@khabarbastar) September 23, 2020
सीएमओ पवन मेरिया ने बताया कि इसे गोबर का सूखा पाॅवडर और गीला गोबर मिलाकर बनाया जाता है। इसे सूखने मे तीन दिन लगते हैं। सामान्य गमले की मानिंद इसके नीचे छेद होता है ताकि पानी ज्यादा हो जाए, तो बह जाए। इसे बनाने में दो से तीन व्यक्ति लगते हैं।
सीएमओ ने बताया कि छग में बीजापुर पहला नगरीय निकाय है, जहां गोेबर के गमले बनाए जा रहे हैं। उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब एवं गुजरात में गोबर का बहुद्देशीय इस्तेमाल होता है क्योंकि वहां पशुधन अधिक है।
उन्होंने बताया कि इसके पहले मशीन से ही प्रेस कर गोबर को लकड़ी की शक्ल दी गई है। इसे बनाने में प्रति क्विंटल 800 रूपए की लागत लगती है और इस वजह से इसकी कीमत एक हजार रूपए प्रति क्विंटल रखा गया है। होटलों एवं ढाबों में इसे सप्लाई किया जाएगा।
दीपावली में दीप भी
सीएमओ पवन मेरिया ने बताया कि इस दीपावली से पहले गोबर के दिए बनाए जाएंगे। इसके मार्केट में उतारा जाएगा। उन्होंने बताया कि गोबर से वर्मी कंपोस्ट भी नियमित रूप से बनाया जा रहा है।
कोकड़ापारा में इसके लिए कर्मचारी लगे हैं। वर्मी कंपोस्ट बनने में 75 दिनों का समय लग जाता है जबकि लकड़ी और गमले बनाने में तीन दिन लगते हैं।
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